SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, ६, २३४.] अंतराणुगमै मदि-सुद-ओहिणाणि-अंतरपरूवणं कुदो ? सव्वकालमविच्छिण्णपवाहत्तादो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ २३३॥ तं जहा- एको असंजदसम्मादिट्ठी संजमासंजमं पडिवण्णो । तत्थ सव्वलहुमंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो वि असंजदसम्मादिट्ठी जादो । लद्धमंतोमुहुत्तमंतरं । उकस्सेण पुवकोडी देसूणं ॥ २३४ ॥ तं जहा- जो कोई जीवो अट्ठावीससंतकम्मिओ पुबकोडाउट्ठिदिसण्णिसम्मुच्छिमपज्जत्तएसु उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो (१) विस्संतो (२) विसुद्धो (३) वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो (४) अंतोमुहुत्तेण विसुद्धो संजमासंजमं गंतूणंतरिदो । पुन्वकोडिकालं संजमासंजममणुपालिदूण मदो देवो जादो। लद्धं चदुहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणिया पुचकोडी अंतरं । ___ ओधिणाणिअसंजदसम्मादिहिस्स उच्चदे- एको अट्ठावीससंतकम्मिओ सण्णिसम्मुच्छिमपज्जत्तएमु उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो (१) विस्संतो (२) विसुद्धो (३) वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो (४)। तदो अंतोमुहुत्तेण ओधिणाणी जादो । __ क्योंकि, तीनों शानवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंका सर्वकाल अविच्छिन्न प्रवाह रहता है। तीनों ज्ञानवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ २३३ ॥ जैसे- एक असंयतसम्यग्दृष्टि जीव संयमासंयमको प्राप्त हुआ। वहां पर सर्व अन्तर्मुहूर्त काल रह करके फिर भी असंयतसम्यग्दृष्टि होगया। इस प्रकार अन्तमुहूर्तप्रमाण अन्तर लब्ध हुआ। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पूर्वकोटी है ॥२३४॥ मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई जीव पूर्वकोटीकी आयुस्थितिवाले संशी सम्मूछिम पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो (१) विश्राम ले (२) विशुद्ध हो (३) वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (४) और अन्तर्मुहूर्तसे विशुद्ध हो संयमासंयमको प्राप्त होकर अन्तरको प्राप्त हुआ। पूर्वकोटीकालप्रमाण संयमासंयमको परिपालन कर मरा और देव हुआ। इस प्रकार चार अन्तर्मुहूर्तोंसे कम पूर्वकोटीप्रमाण मति-श्रुतज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टिका अन्तर लब्ध हुआ। अवधिज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टिका अन्तर कहते हैं- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई एक जीव संशी सम्मूच्छिम पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो (१) विश्राम ले (२) विशुद्ध हो (३) वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (४)। पश्चात् अन्तर्मुहूर्तसे अवधिशानी होगया। अन्तर्मुहूर्त अवधिशानके साथ रह १ एकजीव प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८. २उत्कर्षेण पूर्वकोटी देशोना। स. सि. १,८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy