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________________ ११४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, ६, २२९. णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणि-विभंगणाणीसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २२९॥ अच्छिण्णपवाहत्तादो गुणसंकंतीए अभावादो । सासणसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च ओघं ॥ २३०॥ कुदो ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमय-पलिदोवमासंखेजदिभागेहि साधम्मादो । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २३१ ॥ कुदो ? णाणतरगमणे मग्गणविणासादो।। आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीसु असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २३२ ॥ ___ ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी और विभंगज्ञानी जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी और एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ २२९॥ - क्योंकि, इन तीनों अज्ञानवाले मिथ्यादृष्टियोंका अविच्छिन्न प्रवाह होनेसे गुणस्थानके परिवर्तनका अभाव है। तीनों अज्ञानवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है ॥ २३० ॥ क्योंकि, जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागकी अपेक्षा समानता है। तीनों अज्ञानवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोंका एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ २३१॥ क्योंकि, प्ररूपणा किए जानेवाले ज्ञानोंसे भिन्न शानोंको प्राप्त होने पर विवक्षित मार्गणाका विनाश हो जाता है। आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञानवालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥२३२॥ १ ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानश्रुताज्ञानविभंगज्ञानिषु मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया एक जीवापेक्षया च नास्त्यन्तरम् । स. सि. १,८. २ सासादनसम्यग्दृष्टे नाजीवापेक्षया सामान्यवत् । स. सि. १,८. ३ एकजीवं प्रति नास्त्यन्तरम् । स. सि. १,८. ४ आभिनिबोधिकश्रुतावधिज्ञानिषु असंयतसम्यग्दृष्टे नाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । स. सि. १,८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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