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११२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, २२३. मिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठि--संजदासंजद-पमत्त--अप्पमत्तसंजदाणं मण - जोगिभंगो होदु, णाणेगजीवं पडि अंतराभावेण साधम्मादो । सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठीणं मणजोगिभंगो होदु णाम, णाणाजीवजहण्णुक्कस्स-एगसमय-पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागंतरेहि, एगजीवं पडि अंतराभावेण च साधम्मादो। तिण्हमुवसामगाणं पि मणजोगिभंगो होदु णाम, णाणाजीवजहण्णुक्कस्सेण एगसमयवासपुधत्तंतरेहि, एगजीवस्संतराभावेण च साधम्मादो । किंतु तिण्हं खवाणं मणजोगिभंगो ण घडदे । कुदो ? मणजोगस्सेव कसायाणं छम्मासांतराभावा । तं हि कधं णव्वदे ? अप्पिदकसायवदिरित्तेहि तिहि कसाएहि एग-दु-ति-संजोगकमेण खवगसेटिं चढमाणाणं बहुवंतरुवलंभा ? ण एस दोसो, ओघेण सहप्पिदमणजोगिभंगण्णहाणुववत्तीदो। चदुण्हं कसायाणमुक्कस्संतरस्स छम्मासमेत्तस्सेव सिद्धीदो । ण पाहुडसुत्तेण वियहिचारो, तस्स भिण्णोवदेसत्तादो ।
शंका-मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतोंका अन्तर भले ही मनोयोगियोंके समान रहा आवे, क्योंकि, नाना जीव और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे समानता पाई जाती है । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका भी अन्तर मनोयोगियोंके समान रहा आवे, क्योंकि, नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागकी अपेक्षा, तथा एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे समानता पाई जाती है। तीनों उपशामकोंका भी अन्तर मनोयोगियोंके समान रहा आवे, क्योंकि, नाना जीवोंके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर क्रमशः एक समय और वर्षपृथक्त्वकालसे, तथा एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे समानता पाई जाती है। किन्तु तीनों क्षपकोंका अन्तर मनोयोगियोंके समान घटित नहीं होता है, क्योंकि, मनोयोगियोंके समान कषायोंका अन्तर छह मास नहीं पाया जाता है ? ।
प्रतिशंका-यह कैसे जाना जाता है ?
प्रतिसमाधान-विवक्षित कषायसे व्यतिरिक्त शेष तीन कषायोंके द्वारा एक, दो और तीन संयोगके क्रमसे क्षपकश्रेणीपर चढ़नेवाले जीवोंका बहुत अन्तर पाया जाता है ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, ओघके साथ विवक्षित मनोयोगियोंके समान कथन अन्यथा बन नहीं सकता है, तथा चारों कषायोंका उत्कृष्ट अन्तर छह मासमात्र ही सिद्ध होता है। ऐसा माननेपर पाहुडसूत्रके साथ व्यभिचार भी नहीं आता है, क्योंकि, उसका उपदेश भिन्न है ।
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