SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धवलाका गणितशास्त्र यह संख्या उन्तीस अंक ग्रहण करती है। इसमें भी उतने ही स्थान हैं जितने कि (१,००,००,०००) में, परन्तु है वह उससे बड़ी संख्या। यह बात धवलाकारको ज्ञात है, और उन्होंने मनुष्यक्षेत्रका क्षेत्रफल निकालकर यह सिद्ध किया है कि उक्त संख्याके मनुष्य मनुष्यक्षेत्रमें नहीं समा सकते, और इसलिये उस संख्यावाला मत ठीक नहीं है । मौलिक प्रक्रियायें धवलामें जोड़, बाकी, गुणा, भाग, वर्गमूल और घनमूल निकालना, तथा संख्याओंका घात निकालना (The raising of numbers to given powers) आदि मौलिक प्रक्रियाओंका कथन उपलब्ध है। ये क्रियाएं पूर्णाक और भिन्न, दोनोंके संबंधमें कही गई हैं। धवलामें वर्णित घातांकका सिद्धान्त ( Theory of indices ) दूसरे गणित ग्रंथोंसे कुछ कुछ भिन्न है। निश्वयतः यह सिद्धान्त प्राथमिक है, और सन् ५०० से पूर्वका है । इस सिद्धान्तसंबंधी मौलिक विचार निम्नलिखित प्रक्रियाओंके आधारपर प्रतीत होते हैं:-(१) वर्ग, (२) धन, (३) उत्तरोत्तर वर्ग, (४) उत्तरोत्तर घन, (५) किसी संख्याका संख्यातुल्य घात निकालना ( The raising of numbers to their own power), (६) वर्गमल, (७) घनमूल, (८) उत्तरोत्तर वर्गमूल, (९) उत्तरोत्तर घनमूल, आदि । अन्य सब घातांक इन्हीं रूपोंमें प्रगट किये गये हैं। उदाहरणार्थ-अरे को अके घनका प्रथम वर्गमूल कहा है। अ' को अका घनका घन कहा है । अप को अ के घनका वर्ग, या वर्गका घन कहा है, इत्यादि । उत्तरोत्तर वर्ग और घनमूल नीचे लिखे अनुसार हैं अ का प्रथम वर्ग याने (अ)२ = अरे , द्वितीय वर्ग , (अ२ )२ = अ = अ२२ , तृतीय वर्ग ,, , न वर्ग , उसी प्रकार- १ का प्रथम वर्गम्ल याने , द्वितीय , , " तृतीय , , " न , , १ धवला, भाग ३ पृष्ठ, ५३. अई अरे अरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy