________________
...........
१, ६, २१५.] अंतराणुगमे अपगदवेदि-अंतरपरूवणं
[१०९ दोण्हं खवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहणणेण एगसमयं ॥२११ ॥
सुगममेदं सुत्तं । उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ २१२ ॥ कुदो ? अप्पसत्थवेदत्तादो । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ २१३ ॥ सुगममेदं ।
अवगदवेदएसु अणियट्टिउवसम-सुहुमउवसमाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥२१४ ॥
सुगममेदं । उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ २१५ ॥ कुदो ? उवसामगत्तादो।
नपुंसकवेदी अपूर्वकरणसंयत और अनिवृत्तिकरणसंयत, इन दोनों क्षपकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥२११॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त दोनों नपुंसकवेदी क्षपकोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है ॥ २१२ ॥
क्योंकि, यह अप्रशस्त वेद है (और अप्रशस्त वेदसे क्षपकश्रेणी चढ़नेवाले जीव बहुत नहीं होते)।
उक्त दोनों नपुंसकवेदी क्षपकोंका एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ २१३ ॥
यह सूत्र सुगम है।
अपगतवेदियोंमें अनिवृत्तिकरण उपशामक और सूक्ष्मसाम्पराय उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥ २१४ ॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त दोनों अपगतवेदी उपशामकोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है ॥ २१५ ॥
क्योंकि, ये दोनों उपशामक गुणस्थान हैं (और ओघमें उपशामकोंका इतना ही उत्कृष्ट अन्तर बतलाया गया है)।
१ द्वयोः क्षपकयोः स्त्रीवेदवत् । स.सि. १,८. २ अपगतवेदेषु अनिवृतिबादरोपशमसूक्ष्मसाम्परायोपशमकयो नाजीवापेक्षया सामान्योक्तम् । स.सि. १,८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org