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________________ १०८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ६, २१०. कुदो ? सासणसम्मादिहिस्स णाणाजीव पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूगं । सम्मामिच्छादिहिस्स णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणं । असंजदसम्मादिविस्स णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टे देसूणं । संजदासंजदस्स णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतर; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणं । पमत्तस्स णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्स्कसेण अद्धपोग्गलपरियट्ट देसूर्ण । अप्पमत्तस्स णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुतं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणं । अपुवकरणस्स णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियहं देसूगं । एवमणियट्टिस्स वित्ति । एदेसिमेदेहि ओघादो भेदाभावा । क्योंकि, नपुंसकवेदी सासादनसम्यग्दृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमका असंख्यातवां भाग है; एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर पल्योपमका असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमका असंख्यातवां भाग है: एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। असंयतसम्यग्दृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । संयतासंयतका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। प्रमत्तसंयतका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । अप्रमत्तसंयतका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । अपूर्वकरणका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्व, तथा एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अन्तर है। इसी प्रकार अनिवृत्तिकरणका भी अन्तर जानना चाहिए। इन उक्त जीवोंका उक्त जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरोंकी अपेक्षा ओघसे कोई भेद नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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