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१, ६, २००. ]
अंतरागमे पुरिसवेदि - अंतर परूवणं
उक्कस्सेण सागरोवमसदपुत्तं ॥ २०० ॥
असंजदसम्मादिट्ठिस्स उच्चदे- एक्को अट्ठावीससंतकम्मिओ अण्णवेदो देवेसु उबवण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो ( १ ) विस्तो ( २ ) विसुद्धो (३) वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो ( ४ ) । मिच्छत्तं गतूणंतरिदो सगट्ठिदिं भमिय अंते उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो (५) । छावलियावसेसे उवसमसम्मत्तकाले आसाणं गंतूण मदो देवेसु उबवण्णो | पंचहि अंतमुतेहि ऊणं सागरोत्रमसदपुधत्त मंतरं होदि ।
संजदासंजदस्स वुच्चदे- एक्को अण्णवेदो पुरिसवेदेसु उववण्णो । वे मासे गन्भे अच्छिदूणणिक्खता दिवसपुधत्तेण उवसमसम्मत्तं संजमासंजमं च जुग पडिवण्णो । उवसमसम्मत्तद्धाए छाबलियाओ अस्थि त्ति सासणं गदो ( १ ) मिच्छत्तं गंतूण पुरिसवेदट्ठिदिं परिभमिय अंते. मणुसेसु उववण्णो । कदकरणिज्जो होदूग संजमासंजमं पडिवण्णो ( २ ) । लद्धमंतरं । तदो अप्पमत्तो ( ३ ) पमत्तो ( ४ ) अप्पमत्तो ( ५ ) । उवरि छ अंतमुहुत्ता । एवं हि मासेहि तीहि दिवसेहि एक्कारसेहि अंतोमुहुतेहि य ऊणा पुरिसवे उक्कस्तरं होदि । किं कारणं अंतरे लद्धे मिच्छत्तं णेदुण अण्णवेदेसु ण असंयतादि चार गुणस्थानवर्ती पुरुषवेदियोंका उत्कृष्ट अन्तर सागरोपमशतपृथक्त्व है || २०० ॥
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असंयत सम्यग्दृष्टि पुरुषवेदी जीवका उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं - मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक अन्य वेदी जीव देवोंमें उत्पन्न हुआ । छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो (१) विश्राम ले (२) विशुद्ध हो (३) वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (४) । पश्चात् मिथ्यात्वको जाकर अन्तरको प्राप्त हो अपनी स्थितिप्रमाण परिभ्रमणकर अन्तमें उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (५) । उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलियां अवशेष रहने पर सासादनको जाकर मरा और देवोंमें उत्पन्न हुआ । इस प्रकार पांच अन्तर्मुहूर्तीसे कम सागरोपमशतपृथक्त्व पुरुषवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर होता है ।
संयतासंयत पुरुषवेदी जीवका उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं- कोई एक अन्य वेदी जीव पुरुषवेदियों में उत्पन्न हुआ। दो मास गर्भमें रहकर निकलता हुआ दिवस पृथक्त्वसे उपशमसम्यक्त्व और संयमासंयमको एक साथ प्राप्त हुआ । जब उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलियां रहीं तब सासादनगुणस्थानको प्राप्त हो ( १ ) मिथ्यात्वको जाकर पुरुषवेद की स्थितिप्रमाण परिभ्रमणकर अन्तमें मनुष्यों में उत्पन्न हुआ और कृतकृत्यवेदक होकर संयमासंयमको प्राप्त हुआ (२) । इस प्रकार अन्तर लब्ध होगया । पश्चात् अप्रमत्तसंयत ३ ) प्रमत्तसंयत ( ४ ) और अप्रमत्तसंयत हुआ (५) । इनमें ऊपरके गुणस्थानोंसम्बन्धी छह अन्तर्मुहूर्त और मिलाये । इस प्रकार दो मास, तीन दिन और ग्यारह अन्ततसे कम पुरुषवेदकी स्थिति ही पुरुषवेदी संयतासंयतका उत्कृष्ट अन्तर होता है । शंका -- अन्तर प्राप्त हो जानेपर पुनः मिथ्यात्वको ले जाकर अन्य वेदियों में १ उत्कर्षेण सागरोपमशतपृथक्त्वम् । स. सि. १, ८.
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