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________________ .१, ६, १९७.] अंतराणुगमे पुरिसवेदि-अंतरपरूवणं . [१०१ - कुदो? गाणाजीवं पडुच्च अंतराभावेण, एगजीवविसयअंतोमुहुत्त-देसूणवेच्छावट्टिसागरोवमंतरेहि य तदो भेदाभावा । सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १९४ ॥ सुगममेदं । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १९५॥ एदं पि सुगमं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, अंतोमुहत्तं ॥ १९६ ॥ एवं पि सुवोहं । उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १९७ ॥ तं जहा- एक्को अण्णवेदो उवसमसम्मादिट्ठी सासणं गंतूण सासणद्धाए एगो समओ अस्थि त्ति पुरिसवेदो जादो । सासणगुणेण एगसमयं दिट्ठो, विदियसमए मिच्छत्तं क्योंकि, नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे, एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ कम दो च्यासठ सागरोपम अन्तरकी अपेक्षा ओघमिथ्यादृष्टिके अन्तरसे पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टियोंके अन्तरमें कोई भेद नहीं है। पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥ १९४ ॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमका असंख्यातवां भाग है ॥ १९५ ।। यह सूत्र भी सुगम है। पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमका असंख्यातवां भाग और अन्तर्मुहूर्त है ।।१९६॥ यह सूत्र भी सुबोध है। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर सागरोपमशतपृथक्त्व है ।। १९७ ॥ जैसे- अन्य वेदवाला एक उपशमसम्यग्दृष्टि जीव, सासादन गुणस्थानमें जाकर, सासादन गुणस्थानके कालमें एक समय अवशिष्ट रहने पर पुरुषवेदी होगया और सासादन गुणस्थानके साथ एक समय दृष्टिगोचर हुआ। द्वितीय समयमें मिथ्यात्वको १सासादनसम्यग्दृष्टिसम्यग्मिध्यादृष्टयो नाजीवापेक्षया सामान्यवत । स. सि. १,८. २ एकजीवं प्रति जघन्येन पल्योपमासंख्येयभागोऽन्तर्मुहूर्तश्र । स. सि. १, .. उत्कर्वेण सागरोपमशतपथक्त्वम् । स. सि.१,८, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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