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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, १८६. वयणं मुत्ते किण्ण कदं ? ण, पुधत्तणिद्देसेणेव तस्स अवगमादो ।
संजदासंजदस्स उच्चदे- एक्को अट्ठावीसमोहसंतकम्मिओ अण्णवेदो स्थीवेदेसु उनवण्णो वे मासे गम्भे अच्छिदूण णिक्खंतो दिवसपुत्तेण विसुद्धो वेदगसम्मत्तं संजमासंजमं च जुगवं पडिवण्णो (१)। मिच्छत्तं गंतूणंतरिदो स्थीवेदट्ठिदिं परिभमिय अंते पढमसम्मत्तं देससंजमं च जुगवं पडिवण्णो (२)। आसाणं गंतूण मदो देवो जादो । वेहि मुहुत्तेहि दिवसपुधत्ताहिय-वेमासेहि य ऊणा त्थीवेदट्ठिदी उक्कस्संतरं होदि । ... पमत्तस्स उच्चदे- एको अट्ठावीसमोहसंतकम्मिओ अण्णवेदो त्थीवेदमणुसेसु उववण्णो । गब्भादिअट्ठवरिसओ वेदगसम्मत्तमप्पमत्तगुणं च जुगवं पडिवण्णो (१)। पुणो पमत्तो जादो (२)। मिच्छत्तं गंतूणंतरिदो स्थीवेदद्विदिं परिभमिय पमत्तो जादो । लद्धमंतरं (३) । मदो देवो जादो । अट्ठवस्सेहिं तीहिं अंतोमुहुत्तेहि ऊणिया त्थीवेदविदी लद्धमुक्कस्संतरं । एवमप्पमत्तस्स वि उक्कस्संतरं भाणिदव्यं, विसेसाभावा।
शंका-सूत्रमें देशोन' ऐसा वचन क्यों नहीं कहा ?
समाधान नहीं, क्योंकि, 'पृथक्त्व' इस पदके निर्देशसे ही उस देशोनताका शान हो जाता है।
स्त्रीवेदी संयतासंयत जीवका उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं- मोहनीयकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक अन्य वेदी जीव, स्त्रीवेदियोंमें उत्पन्न हुआ। दो मास गर्भमें रह कर निकला और दिवसपृथक्त्वसे विशुद्ध हो वेदकसम्यक्त्व और संयमासंयमको एक साथ प्राप्त हुआ (१)। पश्चात् मिथ्यात्वको जाकर अन्तरको प्राप्त हो स्त्रीवेदकी स्थितिप्रमाण परिभ्रमण कर अन्तमें प्रथमोपशमसम्यक्त्व और देशसंयमको एक साथ प्राप्त हुआ (२)। पुनः सासादन गुणस्थानको जाकर मरा और देव होगया। इस प्रकार दो मुहूर्त और दिवसपृथक्त्वसे अधिक दो माससे कम स्त्रीवेदकी स्थिति स्त्रीवेदी संयतासंयतका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक अन्य वेदी जीव, स्त्रीवेदी मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ । गर्भको आदि लेकर आठ वर्षका हो वेदकसम्यक्त्व और अप्रमत्त गुणस्थानको एक साथ प्राप्त हुआ (१)। पुनः प्रमत्तसंयत हुआ (२)। पश्चात् मिथ्यात्वको जाकर अन्तरको प्राप्त हो स्त्रीवेदकी स्थितिप्रमाण परिभ्रमणकर अन्तमें प्रमत्तसंयत हुआ। इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ(३)। पश्चात् मरा और देव हुआ । इस प्रकार आठ वर्ष और तीन अन्तर्मुहूतोंसे कम स्त्रीवेदकी स्थितिप्रमाण उत्कृष्ट अन्तर लब्ध हुआ।
इसी प्रकारसे स्त्रीवेदी अप्रमत्तसंयतका भी उत्कृष्ट अन्तर कहना चाहिए, क्योंकि, उसमें कोई विशेषता नहीं है।
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