________________
९४) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, १७८. मिच्छादिट्ठीणं णाणेगजीवं पडुच्च अंतराभावेण; सासणसम्मादिट्ठीणं णाणाजीवगयएयसमय-पलिदोवमासंखेज्जदिभागंतरेहि, एगजीवगयअंतराभावेण; असंजदसम्मादिट्ठीणं णाणाजीवगयएयसमयमास-पुधत्तंतरेहि, एगजीवगयअंतराभावेणः सजोगिकेवलिणाणाजीवगयएगसमय-वासपुधत्तेहि, एगजीवगयअंतराभावेण च दोण्हं समाणत्तुवलंभा।
एवं जोगमग्गणा समत्ता । वेदाणुवादेण इत्थिवेदेसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १७८ ॥
सुगममेदं सुत्तं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १७९ ॥
कुदो ? इथिवेदमिच्छादिहिस्स दिट्ठमग्गस्स अण्णगुणं गंतूण पडिणियत्तिय लहुं मिच्छत्तं पडिवण्णस्स अंतोमुहुत्तरुवलंभा।
उक्कस्सेण पणवण्ण पलिदोवमाणि देसूणाणि ॥ १८० ॥
क्योंकि, मिथ्यादृष्टियोंका नाना जीव और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे; सासादनसम्यग्दृष्टियोंका नाना जीवगत जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण अन्तरसे, तथा एक जीवगत अन्तरके अभावसे; असंयतसम्यग्दृष्टियोंका नाना जीवगत जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर मासपृथक्त्वसे, तथा एक जीवगत अन्तरका अभाव होनेसे; सयोगिकेवलियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व अन्तरोसे, तथा एक जीवगत अन्तरका अभाव होनेसे औदारिकमिश्रकाययोगी और कार्मणकाययोगी, इन दोनोंके समानता पाई जाती है।
इस प्रकार योगमार्गणा समाप्त हुई। वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ १७८ ॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ १७९ ॥
क्योंकि, दृष्टमार्गी स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीवके अन्य गुणस्थानको जाकर और लौटकर शीघ्र ही मिथ्यात्वको प्राप्त होनेपर अन्तर्मुहूर्त अन्तर पाया जाता है।
स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्योपम है ॥ १८०॥
१ वेदानुवादेन स्त्रीवेदेषु मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । स. सि. १, ८. २ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः। स. सि. १, ८. ३ उत्कर्षेण पंचपंचाशत्पल्योपमानि देशोनानि | स. सि. १, ८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org