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९२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, १७१. तं जहा- वेउब्धियमिस्सकायजोगिमिच्छादिट्ठिणो सचे वेउब्धियकायजोगं गदा। एगसमयं वेउव्वियमिस्सकायजोगो मिच्छादिट्ठीहि विरहिदो दिट्ठो। विदियसमए सत्तट्ट जणा वेउव्वियमिस्सकायजोगे दिट्ठा । लद्धमेगसमयमंतरं ।
उक्कस्सेण बारस मुहुत्तं ॥ १७१ ॥
तं जधा- वेउब्धियमिस्समिच्छादिट्ठीसु सव्वेसु वेउबियकायजोगं गदेसु बारसमुहुत्तमेत्तमंतरिय पुणो सत्तट्ठजणेसु वेउब्बियमिस्सकायजोगं पडिवण्णेसु बारसमुहुत्तरं होदि ।
एगजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १७२ ॥ तत्थ जोग-गुणंतरगमणाभावा ।
सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीणं ओरालियमिस्सभंगो ॥ १७३॥
कुदो? सासणसम्मादिट्ठीणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण एगसमयं, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो तेहि', एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतर तेण; असंजदसम्मादिट्ठीणं
जैसे- सभी वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीव वैक्रियिककाययोगको प्राप्त हुए । इस प्रकार एक समय वैक्रियिकमिश्रकाययोग, मिथ्यादृष्टि जीवोंसे रहित दिखाई दिया । द्वितीय समयमें सात आठ जीव वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें दृष्टिगोचर हुए । इस प्रकार एक समय अन्तर उपलब्ध हुआ।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है ॥ १७१ ॥
जैसे- सभी वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंके वैक्रियिककाययोगको प्राप्त हो जाने पर बारह मुहूर्तप्रमाण अन्तर होकर पुनः सात आठ जीवोंके वैक्रियिकमिश्रकाययोगको प्राप्त होने पर बारह मुहूर्तप्रमाण अन्तर होता है।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टियोंका एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ १७२ ॥
क्योंकि, उन वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टियोंके अन्य योग और अन्य गुणस्थानमें गमनका अभाव है।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर औदारिकमिश्रकाययोगियोंके समान है ॥ १७३ ॥
क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर क्रमशः एक समय और पल्योपमका असंख्यातवां भाग है इनसे, एक
१ अप्रतौ — भागेहि ' ; आप्रतौ ' -भागोत्तेहि ' ; कातौ ' भागतेहि ' इति पाठः ।
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