SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, ६, १७०. ] अंतरा वेव्वय- मिस्सकायजोगि - अंतर परूवणं तहि तस्स गुण - जोगंतरसंकंतीए अभावा । सजोगिकेवलीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहणेण एगसमयं ॥ १६६ ॥ कुद ? कवाडपज्जायविरहिद केवलण मेगसमओवलंभा । उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ १६७ ॥ कवाडपज्जाणविणा केवलीणं वासपुधत्तच्छणसंभवादो । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १६८ ॥ कुदो ? जोगंतरमगंतूण ओरालियमिस्सकायजोगे चैव दिस्स अतरासंभवा । वेव्वियकायजोगीसु चदुट्टाणीणं मणजोगिभंगो ॥ १६९ ॥ कुदो ? णाणेगजीवं पच्च अंतराभावेण साधम्मादो | वे उव्वियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिट्टीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १७० ॥ क्योंकि, औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवमें उक्त गुणस्थान और औदारि मिश्रकाययोगके परिवर्तनका अभाव है । औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवली जिनोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ।। १६६ ।। क्योंकि, कपाटपर्यायसे रहित केवली जिनोंका एक समय अन्तर पाया जाता है। औदारिक मिश्रका योगी केवली जिनोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है ।। १६७ ॥ क्योंकि, कपाटपर्यायके विना केवली जिनोंका वर्षपृथक्त्व तक रहना सम्भव है । औदारिकमिश्रकाययोगी केवली जिनोंका एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, [ ९९ निरन्तर है ॥ १६८ ॥ क्योंकि, अन्य योगको नहीं प्राप्त होकर औदारिक मिश्रकायये । गमें ही स्थित केवली अन्तरका होना असंभव है । वैक्रियिककाययोगियोंमें आदिके चारों गुणस्थानवर्ती जीवोंका अन्तर मनोयोगियोंके समान है ॥ १६९ ॥ क्योंकि, नाना जीव और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे दोनोंमें . समानता है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है, ॥ १७० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy