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________________ ९०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ६, १६२. कुदो? जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो; इच्चेदेहि ओपादो भेदाभावा । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १६२॥ कुदो ? तत्थ जोगंतरगमणाभावा । गुणंतरं गदस्स वि पडिणियत्तिय सासणगुणण तम्हि चेव जोगे परिणमणाभावा । __ असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १६३ ॥ कुदो ? देव-णेरइय-मणुसअसंजदसम्मादिट्ठीगं मणुसेसु उप्पत्तीए विणा मणुसअसंजदसम्मादिट्ठीणं तिरिक्वेसु उप्पत्तीए विणा एगसमयं असंजदसम्मादिद्विविरहिदओरालियमिस्सकायजोगस्स संभवादो । उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ १६४ ॥ तिरिक्ख-मणुस्सेमु वासपुधत्तमेत्तकालमसंजदसम्मादिट्ठीणमुववादाभावा । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १६५ ॥ क्योंकि, जघन्यसे एक समय, और उत्कर्षसे पल्योपमका असंख्यातवां भाग अन्तर है, इस प्रकार ओघसे कोई भेद नहीं है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ १६२ ॥ क्योंकि, औदारिकमिश्रकाययोगकी अवस्थामें अन्य योगमें गमनका अभाव है। तथा अन्य गुणस्थानको गये हुए भी जीवके लौटकर सासादनगुणस्थानके साथ उसी ही योगमें परिणमनका अभाव है। औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥ १६३ ॥ क्योंकि, देव, नारकी और मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टियोंका मनुष्योंमें उत्पत्तिके विना, तथा मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टियोंका तिर्यंचोंमें उत्पत्तिके विना असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे रहित औदारिकमिश्रकाययोगका एक समयप्रमाण काल सम्भव है। औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है ॥१६४ ॥ । क्योंकि, तिर्यंच और मनुष्योंमें वर्षपृथक्त्वप्रमाण कालतक असंयतसम्यग्दृष्टियोंका उत्पाद नहीं होता है। औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ १६५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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