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वलंभा ।
१, ६, ११६.] अंतराणुगमे पंचिदिय-अंतरपरूवणं
तं जहा- णव हि विगलिंदिया एइंदियाएइंदिएसु उप्पज्जिय आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपोग्गलपरियट्टे परियट्टिय पुणो णवमु विगलिंदिएमु उप्पण्णा । लद्धमंतरं असंखेज्जपोग्गलपरियट्टमेत्तं ।
पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु मिच्छादिट्टी ओघं ॥ ११४ ॥
कुदो ? णाणाजी पडुच्च णस्थि अंतरं, एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण वे छावट्ठिसागरोवमाणि अंतोमुहुत्तेण ऊणाणि इच्चेएण भेदाभावा ।।
सासणसम्मादिट्टि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ११५ ॥
दोगुणट्ठाणजीवेसु सव्येसु अण्णगुणं गदेसु दोहं गुणट्ठाणाणं एगसमयविरहुउक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ११६ ॥ कुदो ? सांतररासित्तादो । बहुगमंतरं किण्ण होदि ? सभावा ।
जैसे- नवों प्रकारके विकलेन्द्रिय जीव, एकेन्द्रिय या अनेकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर आवलीके असंख्यातवें भागमात्र पुद्गलपरिवर्तन कालतक परिभ्रमण कर पुनः नवों प्रकारके विकलेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुए । इस प्रकारसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त हु
पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्तकोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर ओघके समान है ॥ ११४ ॥
क्योंकि, नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, एक जीवको अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त कम दो छयासठ सागरोपमकाल अन्तर है। इस प्रकार ओघकी अपेक्षा इनमें कोई भेद नहीं है।
उक्त दोनों प्रकारके पंचेन्द्रिय सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर
उक्त दोनों गुणस्थानोंके सभी जीवोंके अन्य गुणस्थानको चले जाने पर दोनों गुणस्थानोंका एक समय विरह पाया जाता है।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥११६ ॥ क्योंकि, ये दोनों सान्तर राशियां हैं। शंका इनका पल्योपमके असंख्यातवें भागसे अधिक अंतर क्यों नहीं होता? समाधान-स्वभावसे ही अधिक अन्तर नहीं होता है। १पंचेन्द्रियेषु मिथ्यादृष्टेः सामान्यवत् । स. सि. १,८. २ सासादनसम्यग्दृष्टिसम्यग्मिथ्यादृष्टयो नाजीवापेक्षया सामान्यवत् । स. सि. १,८.
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