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१, ६, ६८.] अंतराणुगमे मणुस्स-अंतरपरूवणं
[५१ आगदो मणुसेसु उववण्णो । गब्भादिअहवस्सेसु गदेसु विसुद्धो वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो (१)। मिच्छत्तं गंतूगंतरिय सत्तेत्तालीसपुचकोडीओ गमेदूण तिपलिदोवमिएसु उववण्णो । तदो बद्धाउओ संतो उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो (२)। उवसमसम्मत्तद्धाए छ आवलियावसेसाए सासणं गंतूण मदो देवो जादो । अहवस्सेहि वहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणा सगहिदी असंजदसम्मादिट्ठीणं उक्कस्संतरं होदि । एवं मणुसपज्जत्त-मणुसिणीणं पि । णवरि तेवीस-सत्तपुषकोडीओ तिपलिदोवमेसु अहियाओ त्ति वत्तव्यं ।
संजदासंजदप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ६७ ॥
सुगगमेदं सुत्तं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ ६८॥
कुदो ? तिविहमणुसेसु द्विदतिगुणवाणजीवस्स अण्णगुणं गंतूर्णतरिय पुणो अंतोमुहुत्तेण पोराणगुणस्सागमुवलंभा। प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक जीव अन्यगतिसे आया और मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। पुनः गर्भको आदि लेकर आठ वर्षके बीतनेपर विशुद्ध हो वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (१) । पुनः मिथ्यात्वको जाकर अन्तरको प्राप्त हो सैंतालीस पूर्वकोटियां बिताकर तीन पल्योपमवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् आयुको बांधता हुआ उपशमसम्यत्वको प्राप्त हुआ (२)। उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलियां अवशेष रहनेपर सासादन गुणस्थानको जाकर मरा और देव हुआ। इस प्रकार आठ वर्ष और दो अन्तमुहूतोसे कम अपनी स्थिति असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट अन्तर है।
इसी प्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंका भी अन्तर कहना चाहिए । विशेष बात यह है कि मनुष्यपर्याप्त असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर तेईस पूर्वकोटियां तीन पल्योपममें अधिक तथा मनुष्यनियों में सात पूर्वकोटियां तीन पल्योपममें अधिक होती हैं, ऐसा कहना चाहिए।
संयतासंयतोंसे लेकर अप्रमत्तसंयतों तकके मनुष्यत्रिकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ ६७ ॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ६८॥
क्योंकि, तीन प्रकारके मनुष्यों में स्थित संयतासंयतादि तीन गुणस्थानवर्ती जीवका अन्य गुणस्थानको जाकर अन्तरको प्राप्त होकर और पुनः लौटकर अन्तर्मुहूर्त द्वारा पुराने गुणस्थानका होना पाया जाता है।
१ संयतासंयतप्रमत्ताप्रमत्तानां नानाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । स. सि. १, ८. २ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८,
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