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१, ६, ४४.] अंतराणुगमे तिरिक्ख-अंतरपरूवणं
[ ३९ तं जहा- पंचिंदियतिरिक्खतिगसासणसम्मादिट्ठिपवाहो केत्तियं पि कालं णिरंतरमागदो । पुणो सव्वेसु सासणेसु मिच्छत्तं पडिवण्णेसु एगसमयं सासणगुणविरहो होदूण विदियसमए उवसमसम्मादिट्ठिजीवेसु सासणं पडिवण्णेसु लद्धमेगसमयमंतरं । एवं चैव तिरिक्खतिगसम्मामिच्छादिट्ठीणं पि वत्तव्यं ।
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४३ ॥
तं जहा- पंचिंदियतिरिक्खतिगसासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठिजीवेसु सम्बेसु अण्णगुणं गदेसु दोण्हं गुणट्ठाणाणं पंचिंदियतिरिक्खतिएसु उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तंतरं होदूण पुणो दोहं गुणट्ठाणाणं संभवे जादे लद्धमंतर होदि ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, अंतोमुहुत्तं ॥४४॥
पंचिंदियतिरिक्खतियसासणाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, सम्मामिच्छादिट्ठीणं अंतोमुहत्तमेगजीवजहणंतरं होदि । सेसं सुगमं ।
जैसे-पंचेन्द्रिय तिर्यंच-त्रिक सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका प्रवाह कितने ही काल तक निरन्तर आया । पुनः सभी सासादन जीवोंके मिथ्यात्वको प्राप्त हो जानेपर एक समयके लिए सासादन गुणस्थानका विरह होकर द्वितीय समयमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके सासादन गुणस्थानको प्राप्त होनेपर एक समय प्रमाण अन्तरकाल प्राप्त होगया। इसी प्रकार तीनों ही जातिवाले तिर्यंच सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका भी अन्तर कहना चाहिए।
उक्त तीनों प्रकारके तिथंच सासादन और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥ ४३ ॥
जैसे- तीनों ही जातिवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि सभी जीवोंके अन्य गुणस्थानको चले जानेपर इन दोनों गुणस्थानोंका पंचेन्द्रिय तिर्यंचत्रिकमें उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र अन्तर होकर पुनः दोनों गुणस्थानोंके संभव हो जानेपर उक्त अन्तर प्राप्त हो जाता है।
___सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमके असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त है ॥४४॥
पंचेन्द्रिय तिर्यंचत्रिक सासादनसम्यग्दृष्टियोंका पल्योपमके असंख्यातवें भाग और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण एक जीवका जघन्य अन्तर होता है । शेष सुगम है।
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