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________________ (३६) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ६, ३८. पंचिंदियतिरिक्खेसु उववज्जिय मणुसाउअंबंधिय अवसाणे उवसमसम्मत्तं पडिवज्जिय सम्मामिच्छत्तं गदो (३) । लद्धमंतरं । तदो मिच्छत्तं गदो (४) मणुसेसुववण्णो । उवरि सासणभंगो । एवं सत्तारसअंतोमुहुत्तब्भहिय-अट्ठवस्सेहि ऊणमद्धपोग्गलपरियट्ट सम्मामिच्छत्तुक्कस्संतरं होदि । __ असंजदसम्मादिहिस्स णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतर; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियह देसूणं । णवरि विसेसो उच्चदे- एक्को अणादियमिच्छादिट्ठी तिण्णि करणाणि काऊण पढमसम्मत्तं पडिवण्णो (१) उवसमसम्मत्तद्धाए छावलियावसेसाए आसाणं गंतूगंतरिदो । अद्धपोग्गलपरियÉ परियट्टिदूण दुचरिमभवे पंचिंदियतिरिक्खेसु उववण्णो । मणुसेसु वासपुधत्ताउअंबंधिय उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो । तदो आवलियाए असंखेजदिभागमेत्ताए वा एवं गंतूण समऊणछावलियमेत्ताए वा उवसमसम्मत्तद्धाए सेसाए आसाणं गंतूण मणुसगदिपाओग्गम्हि मदो मणुसो जादो (२)। उवरि सासणभंगो । एवं पण्णारसेहि अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियअट्ठ'वस्सेहि ऊणमद्धपोग्गलपरियट्टं सम्मत्तुक्कस्संतरं होदि । उत्पन्न होकर मनुष्य आयुको बांधकर अन्तमें उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होकर सम्यग्मिथ्यात्वको गया (३)। इस प्रकार अन्तर प्राप्त हुआ। पुनः मिथ्यात्वको गया (४) और मरकर मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। इसके पश्चात्का कथन सासादनसम्यग्दृष्टिके समान ही है। इस प्रकार सत्तरह अन्तर्मुहूर्तोंसे अधिक आठ वर्षों से कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अन्तर होता है। असंयतसम्यग्दृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है; एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे देशोन अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अन्तरकाल है । केवल जो विशेषता है वह कही जाती है- एक अनादिमिथ्यादृष्टि जीव तीनों ही करणोंको करके प्रथमोपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (१) और उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलियां अवशेष रह जाने पर सासादन गुणस्थानको जाकर अन्तरको प्राप्त होगया। पश्चात् अर्धपुद्गलपरिवर्तन काल परिवर्तित होकर द्विचरम भवमें पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुआ। पुनः मनुष्योंमें वर्षपृथक्त्वकी आयुको बांधकर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पीछे आवलोके असंख्यातवें भागमात्र कालके, अथवा यहांसे लगाकर एक समय कम छह आवली कालप्रमाण तक, उपशमसम्यक्त्वके कालमें अवशेष रह जानेपर सासादन गुणस्थानको जाकर मनुष्यगतिके योग्य कालमें मरा और मनुष्य हुआ (२)। इसके ऊपर सासादनके समान कथन जानना चाहिए। इस प्रकार पन्द्रह अन्तर्मुहूतोंसे अधिक आठ वर्षसे कम अर्धपुगल परिवर्तनकाल असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट अन्तर होता है। ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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