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________________ ३२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ६, ३७. उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि ॥ ३७॥ णिदरिसणं- एको तिरिक्खो मणुस्सो वा अट्ठावीससंतकम्मिओ तिपलिदोवमाउहिदिएसु कुक्कुड-मक्कडादिएसु उववण्णो, वे मासे गम्भे अच्छिदूग णिक्खंतो । ___एत्थ वे उवदेसा । तं जहा- तिरिक्खेसु वेमास-मुहुत्तपुधत्तस्सुवरि सम्मत्तं संजमासंजमं च जीवो पडिवज्जदि । मणुसेसु गम्भादिअट्ठवस्सेसु अंतोमुहत्तब्भहिएसु सम्मत्तं संजमं संजमासंजमं च पडिवज्जदि त्ति । एसा दक्षिणपडिवत्ती । दक्षिणं उज्जु आइरियपरंपरागदमिदि एयट्ठो । तिरिक्खेसु तिण्णिपक्ख-तिण्णिदिवस-अंतोमुहुत्तस्सुवरि सम्मत्तं संजमासंजमं च पडिवज्जदि । मणुसेसु अट्ठवस्साणमुवरि सम्मत्तं संजमं संजमासंजमं च पडिवज्जदि त्ति । एसा उत्तरपडियत्ती । उत्तरमणुज्जुवं आइरियपरंपराए णागदमिदि एयहो। पुणो मुहुत्तपुधत्तेण विसुद्धो वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो । अवसाणे आउअंबंधिय मिच्छत्तं गदो । पुणो सम्मत्तं पडिवज्जिय कालं कादृण सोहम्मीसाणदेवेसु उववण्णो । आदिल्लेहि मुहुत्तपुधत्तब्भहिय-वेमासेहि अवसाणे उवलद्ध-वेअंतोमुहुत्तेहि य ऊणाणि तिण्णि तिथंच मिथ्यादृष्टि जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्योपम है ॥ ३७॥ ___इसका उदाहरण- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक तियंच अथवा मनुष्य तीन पल्योपमकी आयुस्थितिवाले कुक्कुट-मर्कट आदिमें उत्पन्न हुआ और दो मास गर्भमें रहकर निकला। ___ इस विषयमें दो उपदेश हैं। वे इस प्रकार हैं-तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुआ जीव, दो मास और मुहूर्त-पृथक्त्वसे ऊपर सम्यक्त्व और संयमासंयमको प्राप्त करता है। मनुष्यों में गर्भकालसे प्रारंभकर, अन्तर्मुहूर्तसे अधिक आठ वर्षोंके व्यतीत हो जानेपर सम्यक्त्व, संयम और संयमासंयमको प्राप्त होता है। यह दक्षिण प्रतिपत्ति है। दक्षिण, ऋजु और आचार्यपरम्परागत, ये तीनों शब्द एकार्थक हैं । तिर्यंचों में उत्पन्न हुआ जीव तीन पक्ष, तीन दिवस और अन्तर्मुहूर्तके ऊपर सम्यक्त्व और संयमासंयमको प्राप्त होता है । मनुष्यों में उत्पन्न हुआ जीव आठ वर्षोंके ऊपर सम्यक्त्व, संयम और संयमासंयमको प्राप्त होता है। यह उत्तर प्रतिपत्ति है । उत्तर, अनृजु और आचार्यपरम्परासे अनागत, ये तीनों एकार्थवाची हैं। पुनः मुहूर्तपृथक्त्वसे विशुद्ध होकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पश्चात् अपनी आयुके अन्तमें आयुको बांधकर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। पुनः सम्यक्त्वको प्राप्त हो, काल करके सौधर्म-ऐशान देवोंमें उत्पन्न हुआ। इस प्रकार आदिके मुहूर्तपृथक्त्वसे अधिक दो मासोंसे और आयुके अवसानमें उपलब्ध दो अन्तर्मुहूर्तोसे कम तीन १ उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि देशोनानि । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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