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१, ६, ३६.] अंतराणुगमे तिरिक्ख-अंतरपरूवणं अंतोमुहुत्तेहि ऊणाओ सग-सगुक्कस्सद्विदीओ सम्मामिच्छत्तुक्कस्संतरं होदि । सधगदीहिंतो सम्मामिच्छादिट्टिणिस्सरणकमो वुच्चदे । तं जहा- जो जीवो सम्मादिट्ठी होदण आउअंबंधिय सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जदि, सो सम्मत्तेणेव णिप्फिददि । अह मिच्छादिट्ठी होदण आउअंबंधिय जो सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जदि, सो मिच्छत्तेणेव णिप्फिददि । कधमेदं णव्यदे ? आइरियपरंपरागदुवदेसादो ।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥३५॥
सुगममेदं सुत्तं ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥३६॥ ___ कुदो ? तिरिक्खमिच्छादिट्ठिमण्णगुणं णेदूण सव्वजहण्णेण कालेण पुणो तस्सेव गुणस्स तम्मि ढोइदे अंतोमुहुत्तंतरुवलंभा । अन्तर्मुहूतोंसे कम अपनी अपनी पृथिवीकी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण नारकी सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
___ अब सर्व गतियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके निकलनेका क्रम कहते हैं । वह इस प्रकार है- जो जीव सम्यग्दृष्टि होकर और आयुको बांधकर सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होता है, वह सम्यक्त्वके साथ ही उस गतिसे निकलता है। अथवा, जो मिथ्यादृष्टि होकर
और आयुको बांधकर सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होता है, वह मिथ्यात्वके साथ ही निकलता है।
शंका—यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-आचार्यपरम्परागत उपदेशसे जाना जाता है।
तिर्यंच गतिमें, तिर्यंचोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ ३५ ॥
यह सूत्र सुगम है।
तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥३६॥
क्योंकि, तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीवको अन्य गुणस्थानमें ले जाकर सर्वजघन्य कालसे पुनः उसी गुणस्थानमें लौटा ले जानेपर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अन्तर प्राप्त होता है।
१ सम्म वा मिच्छं वा पडिवञ्जिय मरदि णियमेण || सम्मत्तमिच्छपरिणामेसु जहिं आउगं पुरा बद्धं । तहिं मरणं मरणंतसमुग्धादो वि य ण मिस्सम्मि ॥ गो. जी. २३, २४.
२ तिर्यग्गतौ तिरश्वां मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । स. सि. १,८. ३ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८.
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