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१, ६, २३.] अंतराणुगमे णेरइय-अंतरपरूवणं
[२३ उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि ॥ २३ ॥
तं जहा-मिच्छादिविस्स उक्कस्संतरं वुच्चदे। एक्को तिरिक्खोमणुसो वा अट्ठावीससंतकम्मिओ अधो सत्तमीए पुढवीए णेरइएसु उववण्णो छहि पज्जतीहि पज्जत्तयदो (१) विस्संतो (२) विसुद्धो (३) वेदगसम्मत्तं पडिवज्जिय अंतरिदो थोवावसेसे आउए मिच्छत्तं गदो (४)। लद्धमंतरं । तिरिक्खाउअंबंधिय (५) विस्समिय (६) उवट्टिदो। एवं छहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणाणि तेत्तीस सागरोवमाणि मिच्छत्तुक्कस्संतरं होदि ।
असंजदसम्मादिहिस्स उक्कस्संतर वुच्चदे- एक्को तिरिक्खो मणुस्सो वा अट्ठावीससंतकम्मिओ मिच्छादिट्ठी अधो सत्तमीए पुढवीए णेरइएसु उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो (१) विस्संतो (२) विसुद्धो (३) वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो (४) संकिलिट्ठो मिच्छत्तं गंतूणंतरिदो । अवसाणे तिरिक्खाउअं बंधिय अंतोमुहुत्तं विस्समिय विसुद्धो होदूण उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो (५)। लद्धमंतरं । भूओ मिच्छत्तं गंतूणुबट्टिदो (६)। एवं छहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि असंजदसम्मादिट्ठि-उक्कस्संतरं होदि।
मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि नारकियोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागरोपम है ॥२३॥
जैसे, पहले मिथ्यादृष्टि नारकीका उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं- मोह कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक तिर्यंच अथवा मनुष्य, नीचे सातवीं पृथिवीके नारकियों में उत्पन्न हुआ. और छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त होकर (१), विश्राम ले (२), हो (३), वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त कर आयके थोड़े अवशेष रहने पर अन्तरको प्राप्त हो मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ (४)। इस प्रकार अन्तर प्राप्त हुआ। पुनः तिथंच आयुको बांधकर (५), विश्राम लेकर (६) निकला। इस प्रकार छह अन्तर्मुहूर्तोंसे कम तेतीस सागरोपम काल मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अन्तर है।
__अब असंयतसम्यग्दृष्टि नारकीका उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं- मोह कर्मकी अट्ठाईस कर्मप्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक तिर्यंच, अथवा मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीव नीचे सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें उत्पन्न हुआ, और छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त होकर (१) विश्राम लेकर (२) विशुद्ध होकर (३) वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (४)। पुनः संक्लिष्ट हो मिथ्यात्वको प्राप्त होकर अन्तरको प्राप्त हुआ। आयुके अन्तमें तियंचायु बांधकर पुनः अन्तर्मुहूर्त विश्राम करके विशुद्ध होकर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (५)। इस प्रकार इस गुणस्थानका अन्तर लब्ध हुआ । पुनः मिथ्यात्वको जाकर नरकसे निकला। इस प्रकार छह अन्तर्मुहूौसे कम तेतीस सागरोपम काल असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
१ उत्कर्षेण एक-त्रि-सप्त-दश-सप्तदश-द्वाविंशति-त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणि दशोनानि । स. सि. १,८.
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