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२०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, १६. हेट्ठा पडिय अंतरिदो अद्धपोग्गलपरिय परियट्टिदूण अपच्छिमे भवे दंसणत्तिगं खविय अपुव्वुवसामगो जादो (१३)। लद्धमंतरं । तदो अणियट्टी (१४) सुहुमो (१५) उवसंतकसाओ (१६) जादो । पुणो पडिणियत्तो सुहुमो (१७) अणियट्टी ( १८) अपुव्यो (१९) अप्पमत्तो (२०) पमत्तो (२१) पुणो अप्पमत्तो ( २२ ) अपुव्वखवगो (२३) अणियट्टी ( २४ ) सुहुमो (२५) खीणकसाओ (२६) सजोगी (२७) अजोगी (२८) होदूग णिव्बुदो । एवमट्ठावीसेहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणमद्धपोग्गलपरियट्टमपुवकरणस्सुक्कस्संतरं होदि । एवं तिण्हमुवसामगाणं । णवरि परिवाडीए छब्बीसं चउवीसं वावीसं अंतोमुहुत्तेहि ऊणमद्धपोग्गलपरियट्ट तिण्हमुक्कस्संतरं होदि । . चदुण्हं खवग-अजोगिकेवलीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १६ ॥
तं जहा- सत्तट्ठ जणा अट्टत्तरसदं वा अपुब्धकरणखवगा एक्कम्हि चेव समए सव्वे अणियट्टिखवगा जादा। एगसमयमंतरिदमपुधगुणट्ठाणं । विदियसमए सत्तट्ट जणा अगुत्तरसदं वा अप्पमत्ता अपुव्यकरणखवगा जादा । लद्धमंतरमेगसमओ । एवं गिरकर अन्तरको प्राप्त हुआ और अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल प्रमाण परिवर्तन करके अन्तिमभवमें दर्शनमोहनीयकी तीनों प्रकृतियोंका क्षपण करके अपूर्वकरण उपशामक हुआ(१३)। इस प्रकार अन्तरकाल उपलब्ध होगया । पुनः अनिवृत्तिकरण (१४) सूक्ष्मसाम्परायिक (१५) और उपशान्तकषाय उपशामक होगया (१६)। पुनः लौटकर सूक्ष्मसाम्परायिक (१७) अनिवृत्तिकरण (१८) अपूर्वकरण (१९) अप्रमत्तसंयत (२०) प्रमत्तसंयत (२१) पुनः अप्रमत्तसंयत (२२) अपूर्वकरण क्षपक (२३) अनिवृत्तिकरण क्षपक (२४) सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपक (२५) क्षीणकषाय क्षपक (२६) सयोगिकेवली (२७) और अयोगिकेवली(२८) होकर निर्वाणको प्राप्त हुआ। इस प्रकार अट्ठाईस अन्तर्मुहासे कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल अपूर्वकरणका उत्कृष्ट अन्तर होता है। इसी प्रकारसे तीनों उपशामकोका अन्तर जानना चाहिए। किन्तु विशेष बात यह है कि परिपाटीक्रमसे अनिवृत्तिकरण उपशामकके छब्बीस, सूक्ष्मसाम्पराय उपशामकके चौबीस और उपशान्तकषायके बाईस अन्तर्मुहूर्तोंसे कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल तीनों उपशामकोका उत्कृष्ट अन्तर होता है। - चारों क्षपक और अयोगिकेवलीका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होता है ॥ १६ ॥
जैसे- सात आठ जन, अथवा अधिकसे अधिक एक सौ आठ अपूर्वकरण क्षपक एक ही समयमें सबके सब अनिवृत्तिक्षपक होगये । इस प्रकार एक समयके लिए अपूर्वकरण गुणस्थान अन्तरको प्राप्त होगया। द्वितीय समयमें सात आठ जन, अथवा एक सौ आठ अप्रमत्तसंयत एक साथ अपूर्वकरण क्षपक हुए । इस प्रकारसे अपूर्वकरण क्षपकका एक समय प्रमाण अन्तरकाल उपलब्ध होगया। इसी प्रकारसे शेष गुणस्थानोंका भी
१ चतुर्णा क्षपकाणामयोगकेवालनां च नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः सययः । स. सि. १, ८.
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