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________________ १, ६, १२.] अंतराणुगमे चदुउवसामग-अंतरपरूवणं [१७ परियट्टमेत्तो पढमसमए कदो । तत्थंतोमुहुत्तमच्छिय (१) पमत्तो जादो अंतरिदो मिच्छत्तेण अद्धपोग्गलपरियट्ट परियट्टिय अपच्छिमे भवे सम्मत्तं संजमासंजमं वा पडिवज्जिय सत्त कम्माणि खविय अप्पमत्तो जादो (२)। लद्धमंतरं । पमत्तापमत्तपरावचसहस्सं कादूण (३) अप्पमत्तो जादो ( ४ ) । अपुल्यो (५) अणियट्टी (६) सुहुमो (७) खीणकसाओ (८) सजोगी (९) अजोगी (१०) होदूण णिव्वाणं गदो। ( एवं) दसहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणमद्धपोग्गलपरियट्ट ( अप्पमत्तस्सुकस्संतरं होदि)। चदुण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १२ ॥ अपुवस्स ताव उच्चदे- सत्तट्ठ जणा बहुआ वा अपुव्वकरणउवसामगद्धाए खीणाए अणियटिउवसामगा वा अप्पमत्ता वा कालं करिय देवा जादा । एगसमयमंतरिदमपुव्यगुणहाणं । तदो विदियसमए अप्पमत्ता वा ओदरंता अणियट्टिणो वा अपुवकरणउवसामगा जादा । लद्धमेगसमयमंतरं । एवं चेव अणियट्टिउवसामगाणं सुहुमउवसामगाणं उवसंतकसायाणं च जहण्णंतरमेगसमओ वत्तव्यो । किया। उस अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें अन्तर्मुहूर्त रहकर (१) प्रमत्तसंयत हुआ और अन्तरको प्राप्त होकर मिथ्यात्वके साथ अर्धपुद्गलपरिवर्तन काल परिवर्तन कर अन्तिम भवमें सम्यक्त्व अथवा संयमासंयमको प्राप्त होकरदर्शनमोहकी तीन और अनन्तानुबंधीकी चार, इन सात प्रकृतियोंका क्षपण कर अप्रमत्तसंयत हो गया (२)। इस प्रकार अप्रमत्तसंयतका अन्तरकाल उपलब्ध हुआ। पुनः प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानमें सहस्रों परावर्तनोंको करके (३) अप्रमत्तसंयत हुआ (४)। पुनः अपूर्वकरण (५) अनिवृत्तिकरण (६) सूक्ष्मसाम्पराय (७) क्षीणकषाय (८) सयोगिकेवली (९) और अयोगिकेवली (१०) होकर निर्वाणको प्राप्त हुआ । इस प्रकार दश अन्तमुहतोंसे कम अधपुद्गलपारवतनकाल अप्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट अन्तर है। ___ उपशमश्रेणीके चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥ १२ ॥ उनमेंसे पहले अपूर्वकरण उपशमकका अन्तर कहते हैं- सात आठ जन, अथवा बहुतसे जीव, अपूर्वकरण गुणस्थानके उपशामककाल क्षीण हो जाने पर अनिवृत्तिकरण उपशामक अथवा अप्रमत्तसंयत होकर तथा मरण करके देव हुए । इस प्रकार एक समयके लिये अपूर्वकरण गुणस्थान अन्तरको प्राप्त होगया। तत्पश्चात् द्वितीय समयमें अप्रमत्तसंयत, अथवा उतरते हुए अनिवृत्तिकरण उपशामक जीव, अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती उपशामक होगए । इस प्रकार एक समय प्रमाण अन्तरकाल लब्ध होगया। इसी प्रकारसे अनिवृत्तिकरण उपशामक, सूक्ष्मसाम्पराय उपशामक और उपशान्तकशाय उपशामकोका एक समय प्रमाण जघन्य अन्तर कहना चाहिए । १ चतुर्णामुपशमकानां नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः। स.सि. १,८.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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