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१, ६, १०.] अंतराणुगमे असंजदसम्मादिट्ठिआदि-अंतरपरूवणं [१३ विसोहीए विसुज्झिय (८) अपुव्यखवगो (९) अणियट्टिखवगो (१०) सुहुमखवगो (११) खीणकसाओ (१२) सजोगिकेवली (१३) अजोगिकेवली (१४ ) होदूण सिद्धिं गदो। एदेहि चोदसअंतोमुहुत्तेहि ऊणमद्धपोग्गलपरियट्ट सम्मामिच्छत्तुक्कस्संतरं होदि । ।
_असंजदसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा त्ति अंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥९॥
कुदो ? सव्वकालमेदाणमुवलंभा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १० ॥
एदस्स सुत्तस्स गुणट्ठाणपरिवाडीए अत्थो उच्चदे । तं जहा- एक्को असंजदसम्मादिट्ठी संजमासंजमं पडिवण्णो । अंतोमुहुत्तमंतरिय भूओ असंजदसम्मादिट्ठी जादो । लद्धमंतरमंतोमुहुत्तं । संजदासंजदस्स उच्चदे- एक्को संजदासजदो असंजदसम्मादिद्धि मिच्छादिद्धि संजमं वा पडिवण्णो । अंतोमुहुत्तमंतरिय भूओ संजमासंजमं पडिवण्णो । लद्धमंतोमुहुत्तं जहण्णंतरं संजदासंजदस्स । पमत्तसंजदस्स उच्चदे- एगो पमत्तो अप्पमत्तो होकर (८) अपूर्वकरण क्षपक (९) अनिवृत्तिकरण क्षपक (१०) सूक्ष्मसाम्पराय क्षपक (११) क्षीणकषाय (१२) सयोगिकेवली (१३) और अयोगिकेवली (१४) होकरके सिद्धपदको प्राप्त हुआ। इन चौदह अन्तर्मुहूर्तोंसे कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है।
असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानको आदि लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तकके प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥९॥
क्योंकि, सर्वकाल ही सूत्रोक्त गुणस्थानवी जीव पाये जाते हैं। उक्त गुणस्थानोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है॥१०॥
इस सूत्रका गुणस्थानकी परिपाटीसे अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है- एक असंयतसम्यग्दृष्टि जीव संयमासंयमको प्राप्त हुआ। वहांपर अन्तर्मुहूर्तकाल रहकर अन्तरको प्राप्त हो, पुनः असंयतसम्यग्दृष्टि होगया। इस प्रकारसे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अन्तरकाल प्राप्त होगया।
अब संयतासंयतका अन्तर कहते हैं- एक संयतासंयत जीव, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानको, अथवा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानको, अथवा संयमको प्राप्त हुआ और अन्तर्मुहूर्तकाल वहांपर रह कर अन्तरको प्राप्त हो पुनः संयमासंयमको प्राप्त होगया। इस प्रकारसे संयतासंयतका अन्तर्मुहूर्तकाल प्रमाण जघन्य अन्तर प्राप्त हुआ।
१ असंयतसम्यग्दृष्टयाद्यप्रमत्तान्तानां नानाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । स. सि. १, ८. २ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८.
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