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________________ क्रम नं. विषय ९ दर्शनमार्गणा १४९ चभ्रुदर्शनी मिथ्यादृष्टि जीवोंका वर्तमान और अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्र १५० सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तक के चक्षुदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र १५१ मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तक के अवक्षुदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र १५२ अवधिदर्शनी जीवों का स्पर्शनक्षेत्र १५३ केवलदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र १० लेश्यामार्गणा १५४ कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि जीवोंका सोपपत्तिक स्पर्शनक्षेत्र १५५ उक्त तीनों अशुभलेश्यावाले सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंका वर्तमान और अतीतकालिक स्पर्शन क्षेत्र १५६ देवोंसे एकेन्द्रियोंमे मारणान्तिक समुद्धात करनेवाले सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंका तीनों अशुभ लेश्या सम्बन्धी स्पर्शनक्षेत्र यथाक्रमसे बारह बटे चौदह भाग, ग्यारह बटे चौदह भाग और नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्यों नहीं पाया जाता, इस शंकाका 东 स्पर्शनानुगम-विषय-सूची प्र. नं. क्रम नं. Jain Education International २८८-२९० समाधान १५७ कृष्ण, नील और कापोत लेश्या वाले तथा एकेन्द्रियों में मार शान्तिक समुद्धात करनेवाले २८८ २८९ 33 २९० २९०-३०१ २९० २९१-२९३ २९२ विषय सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यच और मनुष्योंका स्पर्शनक्षेत्र क्रमशः बारह बटे चौदह, ग्यारह बटे चौदह और नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्यों नहीं पाया जाता, इस शंकाका समाधान क्रमशः १५८ तिर्यचगति में उत्पन्न होनेवाले देवोंके तीनों अशुभलेश्याओं का उपपादपदसम्बन्धी ग्यारह बटे चौदह, दश बटे चौदह और आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र क्यों नहीं पाया जाता, इस शंकाका समाधान १५९ उक्त तीनों अशुभलेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका सयुक्तिक स्पर्शनक्षेत्र मिथ्यादृष्टि १६० तेजोलेश्यावाले और सासादन सम्यग्दष्टि जीवों का वर्तमान और अतीतकालिक स्पर्शन क्षेत्र १६१ तेजोलेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका वर्तमान और अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्र | १६२ तेजोलेश्यावाले संयतासंयत जीवोंका वर्तमान और अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्र १६३ तेजोलेश्यावाले प्रमत्त और अप्रमत्त संयतों का स्पर्शनक्षेत्र १६४ मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक पद्मलेश्यावाले जीवोंका वर्तमान और अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्र For Private & Personal Use Only (84) पृ. नं. २९२ २९२ २९३ २९४ २९४-२९५ २९५-२९६ २९६-२९७ २९७ २९७-२९८ www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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