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________________ । (४०) षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृ. नं. क्रम नं. विषय पृ. नं. ५४ मिथ्यादृष्टि पंचेन्द्रिय, पंचेद्रिय कुलाचल आदिके क्षेत्रकी 'मनुष्य पर्याप्त और योनिमती तिर्य क्षेत्र' यह संज्ञा कैसे है, इस चोंका वर्तमान और अतीत शंकाका समाधान २१८ कालिक स्पर्शनक्षेत्र, २११-२१२ ६४ मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले ५५ त्रसनालीके बाहिर त्रसकायिक नारकी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका जीवोंके अभाव होनेसे मार स्पर्शनक्षेत्र तिर्यग्लोकका संख्याणान्तिक और उपपादगत उक्त तवां भाग नहीं हो सकता, इस तिर्यंचत्रिकोंका स्पर्शनक्षेत्र सर्व बातका सयुक्तिक आक्षेप और लोक कैसे सम्भव है, इस परिहार २१८-२२० शंकाका समाधान ६५ सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे ५६ सासादनगुणस्थानसे लेकर लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान संयतासंयत गुणस्थान तक उक्त तकके मनुष्योंका स्पर्शनक्षेत्र २२०-२२३ पंचेन्द्रियत्रिकोंका स्पर्शनक्षेत्र २१३/६६ मारणान्तिक समुद्धातगत असं५७ पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्य यतसम्यग्दृष्टि मनुष्योने तिर्य ग्लोकका संख्यातवां भाग कैसे चोंका वर्तमानकालिक स्पर्शन स्पर्श किया, इस शंकाका क्षेत्र समाधान २२१ ५८ पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्य ६७ बद्धायुष्क असंयतसम्यग्दृष्टि चोंका अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्र मनुष्यों के उपपादक्षेत्रके निकालतथा उसकेनिकालनेका विधान नेका विधान २२१-२२२ ५९ अंगुलके असंख्यातवें भागमात्र ६८ सूक्ष्मसे भी सूक्ष्म परिधिक्षेत्रके अवगाहनावाले लब्ध्यपर्याप्त निकालनेका करणसूत्र जीवोंके संख्यात अंगुलप्रमाण |६९ सयोगिकेवली जिनोंका स्पर्शनउत्सेध कैसे संभव है, इस २२३ शंकाका समाधान "७० लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंका वर्त. ६० महामच्छकी अवगाहनामें एक J मानकालिक स्पर्शनक्षेत्र बन्धनसे बद्ध षटकायिक जीवोंका |७१ लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंका अतीतअस्तित्व कैसे जाना जाता है, ___कालिक स्पर्शनक्षेत्र २२४ इस शंकाका समाधान (देवगति) २२४-२४० (मनुष्यगति) २१६-२२४७२ मिथ्यादृष्टि और सासादन६१ मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनु- __ सम्यग्दृष्टि देवोंका वर्तमानष्यनी मिथ्यादृष्टि जीवोंका वर्त___ कालिक स्पर्शनक्षेत्र २२४ मान और अतीतकालिक स्पर्शन ७३ उक्त देवोंका अतीत और अनाक्षेत्र २१६-२१७ गतकालसम्बन्धी स्पर्शनक्षेत्रका ६२ उक्त तीनों प्रकारके सासादन सोपपत्तिक निरूपण २२५ सम्यग्दृष्टि मनुष्योंका वर्तमान ७४ दिशा और विदिशाका स्वरूप, और अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्र २१७-२२० तथा षटापक्रमनियमके होने में ६३ मनुष्योंसे अगम्य प्रदेशवाले । युक्ति क्षेत्र " २२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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