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________________ १३२ १३५ (३६) षटखंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृ, नं. क्रम नं. विषय १३३ अभव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि १४१ उपशम श्रेणीसे उतरकर जीवोंका क्षेत्र मरनेवाले उपशमसम्यक्त्वी १३४ विहारवत्स्वस्थान और वैक्रि जीवोंके सिवाय अन्य उपशमयिकसमुद्धातगत अभव्य जीव सम्यक्त्वी जीवोंका मरण क्यों सामान्यलोक आदि चार नहीं होता, इस शंकाका लोकोंके असंख्यातवें भागमें समाधान और मनुष्यलोकसे असंख्यात सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यगुणे,क्षेत्रमें रहते हैं, इस बातका मिथ्यादृष्टि और मिथ्यादृष्टि सप्रमाण निरूपण जीवोंका पृथक् पृथक् क्षेत्र१३५ सादिबंध करनेवाले जीव निरूपण पल्योपमके असंख्यातवें भाग १३ संज्ञीमार्गणा मात्र होते हैं, इस बातका १४३ संशी जीवों में मिथ्यादृष्टि गुणसयुक्तिक वर्णन १३२-१३३ स्थानसे लेकर क्षीणकषाय १३६ एकेन्द्रियों में संचित अनन्त गुणस्थान तकके जीवोंका क्षेत्र सादिबंधकोंमेंसे जगप्रतरके १४४ असंही जीवोंका क्षेत्र असंख्यातवें भागप्रमाण सादिबंधक जीव त्रसों में क्यों नहीं १४ आहारमार्गणा १३७-१३८ उत्पन्न होते, इस शंकाका १४५ आहारक जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगि१२ सम्यक्त्वमार्गणा १३३-१३६ केवली गुणस्थान तकके १३७ सामान्य सम्यग्दृष्टि और जीवोंका क्षेत्र-निरूपण १३७ क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों में १४६ अनाहारक मिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे जीवोंका क्षेत्र लेकर अयोगिकेवलीगुणस्थान १४७ अनाहारक सासादनसम्य. तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती ग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और जीवोंका क्षेत्र अयोगिकेवलीका क्षेत्र १३८ वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों में असं १४८ अनाहारक सयोगिकेवलीका यत गुणस्थानसे लेकर क्षेत्र अप्रमत्तगुणस्थान तक प्रत्येक स्पर्शनानुगम - गुणस्थानवी जीवोंका क्षेत्र १३९ उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें असंयतगुणस्थानसे लेकर विषयकी उत्थानिका १४१-१४५ उपशान्तकषाय गुणस्थान १ धवलाकारका मंगलाचरण और . तकके जीवोंका क्षेत्र प्रतिज्ञा १४० मारणान्तिकसमुद्धात और उप- | २ स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देशपादपदगत असंयत उपशम भेद-कथन सम्यग्दृष्टि जीवों की संख्याका ३ नामस्पर्शन, स्थापनास्पर्शन, निरूपण १३५/ द्रव्यस्पर्शन, क्षेत्रस्पर्शन, काल. - समाधान १३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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