SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 596
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कालानुगमे सम्मादिट्टिकालपरूवणं एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३२९ ॥ तं जहा - एको मिच्छादिट्ठी उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो, अवरो देससंजमेण सह तं चेव पडिवण्णो, सव्वजहण्णमद्धमच्छिय उवसमसम्मत्तद्धाए छावलियावसेसाए आसाणं गदा । एसो दोहं पि जहण्णकालो । १, ५, ३२३. ] उक्करण अंतोमुहुत्तं ॥ ३२२ ॥ तं जहा- दो मिच्छादिट्टियो । तत्थ एगो उवसमसम्मत्तं, अवरो देससंजम पडिवण्णो । सव्वुक्कस्समंतोमुहुत्तमच्छिय दोणि वि तिन्हमण्णदरं गदा । [ ४८३ पत्तसंजद पहुडि जाव उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था त्ति केव चिरं कालादो होंति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३२३॥ तं जहा - पमत्त अप्पमत्ताणं ताव उच्चदे । सत्तट्ठ जणा बहुआ वा उवसमसम्मा दिट्ठिणो. उसम से दी दो ओदरिय पमत्तापमत्ता होतॄण एगसमयमच्छिय कालं करिय देवा जादा । अपुत्रकरणस्स ओदरमाणेहि, अणियट्टि सुहुमसां पराइयाणं चढणोयरणकिक्रियावाव देहि, उवसंतस्स चढतेहि अप्पिदगुणपडिवण्णैविदियसमए मदेहि जीवेहि एगसमओ वत्तव्वो । एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है || ३२१ ॥ जैसे - एक मिथ्यादृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। दूसरा देशसंयमके साथ उसी उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । दोनों ही जीव सर्वजघन्य काल अपने अपने गुणस्थानों में रह करके उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलियां अवशेष रह जाने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुए । यह दोनों गुणस्थानोंका जघन्य काल है । एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ।। ३२२ ॥ जैसे- दो मिथ्यादृष्टि जीव हैं । उनमेंसे एक उपशमसम्यक्त्व को और दूसरा देशसंयमको प्राप्त हुआ। वहां वे दोनों ही जीव सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्तकाल रह करके सम्यमिथ्यात्व, मिथ्यात्व, अथवा वेदकसम्यक्त्व, इन तीनों में से किसी एक को प्राप्त हुए । प्रमत्तसंयत से लेकर उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक उपशमसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ।। ३२३|| वह इस प्रकार है- उनमें से पहले प्रमत्त और अप्रमत्तसंयतों की एक समयकी प्ररूपणा करते है- सात आठ जन, अथवा बहुतसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव, उपशमश्रेणी से उतर कर प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत होकर, वहां पर एक समय रह करके, मरण कर, देव हुए | अपूर्वकरण गुणस्थानवालेके उतरते हुए, अतिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानवाल आरोहण और अवतरण, इन दोनों ही क्रियाओं में लगे हुए, तथा उपशान्तकषायके चढ़ते हुए विवक्षित गुणस्थानको प्राप्त होकर द्वितीय समयमें मरे हुए जीवोंके द्वारा एक समयकी प्ररूपणा करना चाहिए । १ एकजीवं प्रति जघन्यश्चोत्कृष्टञ्चान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १,८. २ प्रमत्ताप्रमत्तयोश्रतुर्णामुपशमकानां च नानाजीवापेक्षया एकजीवापेक्षया व जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ८. ३ प्रतिषु ' अप्पिदगुणपडिवण्णं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy