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१, ५, ३१८.] कालाणुगमे सम्मादिहिकालपरूवणं
[ १८१ सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिद्वि-खइयसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ ३१७ ॥
कुदो? सव्वगुणट्ठाणाणमप्पणो णाणेगजीवजहण्णुक्कस्सकाले अस्सिदण भेदाभावा। णवरि खइयसम्मादिट्ठि-संजदासंजदेसु अत्थि भेदो। तं भणिस्सामो । ण चेसो भेदो सुत्तेण अपरूविदो, सगंहिदविसेससामण्णमवलंबिय ओघमिदि णिदेसादो। तं जहा- एगो देवो मेरइओ वा सम्मादिट्ठी मणुसेसुवजिय अंतोमुहुत्तभहियगम्भादिअट्ठवस्से गमिय संजमासंजमं पडिवज्जिय अंतोमुहुत्तं विस्तमिय अंतोमुहुत्तेण दंसणमोहणीयं खविय खइयसम्मादिट्ठी जादो। चदुहि अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियअट्ठवस्सेहि ऊणियं पुव्यकोडिसंजमासंजममणुपालिय मदो देवो जादो । एत्थेव विसेसो, णत्थि अण्णत्थ कत्थ वि ।
वेदगसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा त्ति ओघं ॥ ३१८ ॥
कुदो? णाणेगजीवजहण्णुक्कस्सकालेहि सव्वगुणट्ठाणाणं ओघगुणट्ठाणेहितो भेदाभावा।
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तकका काल ओघके समान है ॥३१७॥
क्योंकि, चौथे गुणस्थानसे लेकर ऊपरके सभी गुणस्थानोंका अपने अपने नाना जीव और एक जीवके जघन्य और उत्कृष्ट कालका आश्रय करके सम्यग्दृष्टि जीवोंके साथ कोई भेद नहीं है। विशेष बात यह है कि क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंके कालमें भेद है, उसे कहते हैं । यह कहा जानेवाला भेद सूत्रके द्वारा न कहा गया हो, ऐसी बात नहीं है, क्योंकि, संगृहीत हैं सामान्य और विशेष जिसमें, ऐसे द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन करके 'ओघ' ऐसा पद सूत्र में निर्दिष्ट किया गया है। अब उक्त कालका स्पष्टीकरण करते हैं- कोई एक देव, अथवा नारकी सम्यग्दृष्टि जीव मनुष्यों में उत्पन्न होकर, अन्तर्मुहूर्त अधिक, गर्भको आदि लेकर आठ वर्ष बिताकर, संयमासंयमको प्राप्त होकर और अन्तर्मुहूर्त विश्राम करके, एक अन्तर्मुहूर्तसे दर्शनमोहनीयका क्षपण कर, क्षायिकसम्यग्दृष्टि हो गया। इन चार अन्तर्मुहूतौसे अधिक आठ वर्षोंसे कम पूर्वकोटि वर्षप्रमाण संयमासंयमको परिपालन करके मरा और देव हुआ । यहां पर ही इतनी विशेषता है, और कहीं कुछ भी विशेषता नहीं है।
वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तकका काल ओघके समान है ॥ ३१८ ॥
__ क्योंकि, नाना जीव और एक जीवसम्बन्धी जघन्य और उत्कृष्ट कालोंकी अपेक्षा सूत्रोक्त सर्व गुणस्थानोंके कालका ओघ गुणस्थानोंके कालसे कोई भेद नहीं है।
१ सम्यक्त्वानुवादेन क्षायिकसम्यग्दृष्टीनामसंयतसम्यग्दृष्टयाघयोगकेवल्यन्तानां सामान्योक्तः कालः । B. सि. १,८. २ क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टीना चतुर्णा सामान्योक्तः कालः । स. सि. १, ८.
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