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१६०] छक्खंडागमे जीवाणं
[१, ५, २९०. सवजहण्णमंतोमुहुत्तमच्छिय तेउलेस्सिओ जादो । पुव्वं हायमाण-वड्डमाणतेउ-काउलेस्साहिंतो काउ-णीललेस्साणमागदाण जहण्णकालो उत्तो, सो संपहि एत्थ किण्ण उच्चदे ? ण, पाएण तस्सुवएसाभावा ।
उक्कस्सेण तेत्तीस सत्तारस सत्त सागरोवमाणि देसूणाणि ॥२९०॥
किण्हलेस्साए देसूणाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि, णीललेस्साए देसूणसत्तारस सागरोबमाणि, काउलेस्सियाए देसूणसत्त सागरोवमाणि । 'जहा उद्देसो तहा णिदेसो ' त्ति णायादो उदाहरणाणि उद्देसपरिवाडीए णिदिसंते । तं जहा- एको अट्ठावीससंतकम्मिओ मिच्छादिट्ठी सत्तमाए पुढवीए किण्हलेस्साए सह उववण्णो । छहि पज्जतीहि पज्जत्तयदो विस्संतो विसुद्धो होदूण सम्मत्तं पडिवण्णो। अंतोमुहुत्तूणतेत्तसिं सागरोवमाणि भवसंबंधेण अवद्विदाए किण्हलेस्साए गमिय अंतोमुहुत्तावसेसे मिच्छत्तं गंतूण आउअंबंधिय विस्समिय मदो, तिरिक्खो जादो। एवं छहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि किण्हलेस्साए उक्कस्सकालो होदि ।
एक असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कापोतलेश्याको प्राप्त हुआ। उसमें सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्त काल रह करके तेजोलेश्याको प्राप्त हुआ। . शंका-पहले हायमान तेजोलेश्या और वर्धमान कापोतलेश्यासे क्रमशः कापोत और नीललेश्यामें आये हुए जीवोंका जघन्य काल कहा है, सो वह अब यहां पर क्यों नहीं कहते हैं ?
समाधान नहीं, क्योंकि, प्रायः आजकल उस प्रकारके उपदेशका अभाव है।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागरोपम, सत्तरह सागरोपम और सात सागरोपम है ॥ २९० ॥
कृष्णलेश्यामें कुछ कम तेतीस सागरोपम, नीललेश्यामें कुछ कम सत्तरह सागरोपम भौर कापोतलेश्यामें कुछ कम सात सागरोपम काल है। सो जैसा उद्देश होता है, उसी प्रकारसे निर्देश होता है' इस न्यायानुसार इनके उदाहरण भी उद्देशकी परिपाटीसे निर्दिष्ट किये जाते हैं। वे इस प्रकारसे हैं- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव सातवीं पृथिवीमें कृष्णलेश्याके साथ उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त होकर, विश्राम ले तथा विशुद्ध होकर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। सम्यक्त्वके साथ अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम भवसम्बन्धसे अवस्थित कृष्णलेश्याके साथ बिताकर, अन्तर्मुहूर्त कालके अवशिष्ट रहने पर मिथ्यात्वको जाकर परभवकी आयु बांधकर, विश्राम लेकर मरा और तिर्यंच हुआ । इस प्रकार छह अन्तर्मुहूतोंसे कम तेतीस सागरोपम कृष्णलेश्याका उत्कृष्ट काल होता है।
१ उत्कषण त्रयस्त्रिंशत्सप्तदशसप्तसागरोपमाणि देशोनानि । स. सि. १,८.
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