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१, ५, २९०. ]
कालानुगमे किण्ह - नील- काउलेस्सियकालपरूवण
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एगो अट्ठावीस संतकम्मिओ नीललेस्साए पंचमपुढवीए हेडिमपत्थडे उकस्साउट्ठिदिओ होण उववण्णो । तत्थ जहणिया किण्हलेस्सा चे ण, सव्धेसिं रइयाणं तत्थतणाणं ती चैव लेस्साए अभावा । एक्कम्हि पत्थडे भिण्णलेस्साणं कथं संभवो १ विरोहाभावा । एसो अत्थो सव्वत्थ जाणिदव्वो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो विस्संतो विसुद्धो होदून सम्मत्तं पडिवण्णो । आउट्ठदिमणुपालिय मुदो मणुस्सो जादो । तत्थ वि अंतोमुहुत्तं तीए चेव लेस्साए अच्छिदूण लेस्संतरं गदो । पच्छिल्लमं तो मुहुत्तं पुव्विल्लतिसु अंतोमुहुत्तेसु सोहिय सुद्ध सेसेणं ऊणाणि सत्तारस सागरोवमाणि असंजदसम्मादिट्ठिस्स गीललेस्साए उक्कस्सकालो होदि । एगो मिच्छादिट्ठी तदियाए पुढवीए उक्कस्साउट्टिदिओ काउलेस्साओ होदूण उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो विस्संतो विसुद्ध होदूग सम्मत्तं पडिवज्जिय आउट्ठिदिमणुपालय मणुसो जादो । पच्छा वि अंतोमुहुतं सा चेव लेस्सा होदि । पच्छिल्लं
मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक जीव नीललेश्या के साथ पांचवीं पृथिवीके अधस्तन प्रस्तारके उत्कृष्ट आयुकर्मकी स्थितिवाला हो करके उत्पन्न हुआ । शंका- पांचवीं पृथिवीके अधस्तन प्रस्तार में तो जघन्य कृष्णलेश्या होती है ?
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समाधान – नहीं, पांचवीं पृथिवीके अधस्तन प्रस्तार के समस्त नारकियोंके उसी ही लेश्या का अभाव है।
शंका - एक ही प्रस्तार में दो भिन्न भिन्न लेश्याओंका होना कैसे संभव है ?
समाधान - एक ही प्रस्तार में भिन्न भिन्न जीवोंके भिन्न भिन्न लेश्याओंके होने में कोई विरोध नहीं है । ( अर्थात् कुछ नारकियोंके उत्कृष्ट नीललेश्या ही होती है, और कुछके जघन्य कृष्णलेश्या होती है ।) यही अर्थ सर्वत्र जानना चाहिए ।
इस प्रकार पांचवीं पृथिवीमें उत्पन्न हुआ वह जीव छहों पर्याप्तियों से पर्याप्त हो, विश्राम लेकर तथा विशुद्ध होकर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। वहां अपनी आयुस्थितिका परिपालन करके मरा और मनुष्य हुआ। वहां पर भी अन्तर्मुहूर्त तक उसी पूर्वलेश्या के साथ रह कर अन्य लेश्याको प्राप्त हुआ। इस प्रकार पिछले अन्तर्मुहूर्तको पूर्वके तीन अन्तर्मुहूतौसे कम करके बचे हुए अन्तर्मुहूताँसे कम सत्तरह सागरोपम असंयतसम्यग्दृष्टिके नीललेश्या का उत्कृष्ट काल होता है ।
एक मिथ्यादृष्टि जीव तीसरी पृथिवीमें वहां की उत्कृष्ट आयुकर्म की स्थितिवाला तथा कापोतलेश्यावाला होकरके उत्पन्न हुआ, और छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो, विश्राम ले, विशुद्ध होकर सम्यक्त्वको प्राप्त करके और अपनी आयुकर्मकी स्थितिको भोग करके मनुष्य हुआ । पीछे भी अन्तर्मुहूर्त तक वही ही लेश्या होती है । इस पिछले अन्तर्मुहूर्तको
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