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________________ १, ५, ८६. ] कालानुगमे मणुस अपज्जत्तकाल परूवणं [ ३७९ मणुस अपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति, णाणाजीवं पडुच्च जहणेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ८३ ॥ एइंदियबादर - सुहुम-वि-ति- चउरिंदिय-सण्णि-असण्णिपंचिदियपजत्तापजत्ताणं मणुसपज्जत्ताणं वा मणुसअपज्जत्तएस उववज्जिय खुद्दाभवग्गहणमेचाउद्विदिं गमिय पुजीवेपणाणं तकालुवलंभा । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ८४ ॥ पुव्युप्पण्ण मणुस अपज्जतएसु गदेसु तक्काले चेव अण्णपणे जीवे मणुसअपज्जत्तेसुपपादि उपादिय अणुसंधिज्जमाणे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तअणुसंधानवारसलागुचलंभादो । एगजीवं पडुच्च जहणेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ८५ ॥ पुण्वुत्तजीवेहिंतो आगंतूण मणुसअपज्जसएसु उववण्णस्स खुद्दाभवग्गहणमेचजहण्णा उडिदिकालदंसणादो । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं || ८६ ॥ लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य से क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण काल तक होते हैं ॥ ८३ ॥ क्योंकि, एकेन्द्रिय, बादर और सूक्ष्म, तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंगी और संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक और अपर्याप्तकोंके, अथवा मनुष्यपर्याप्तक जीवोंके, लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों में उत्पन्न होकर क्षुद्रभवग्रहणमात्र आयुस्थितिको बिताकर पूर्वोक्त जीवों में उत्पन्न होनेवाले जीवोंके उक्त काल, अर्थात् क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण काल पाया जाता है । पर्याप्तक मनुष्योंका उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवां भाग 11 28 11 क्योंकि, पूर्वोत्पन्न लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों में चले जाने पर उसी कालमें ही अन्य अन्य जीवको लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों में उत्पन्न करा कराके अनुसंधान करने पर पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र अनुसंधानवारोंकी शलाकाएं पाई जाती हैं । लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है ॥ ८५ ॥ क्योंकि, पूर्वोक्त एकेन्द्रियादि जीवोंसे आकर लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों में उत्पन्न होने बाले जीवके क्षुद्रभवग्रहणमात्र जघन्य आयुस्थितिकाल देखा जाता है । उक्त लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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