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१, ५, ८१.] कालाणुगमे मणुस्सकालपरूवणं
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ ८०॥
दिट्ठमग्गमिच्छादिहि-सम्मामिच्छादिहि-संजदासंजद-पमत्तसंजदगुणहाणेहितो आगदस्स सव्वजहण्णमंतोमुहुत्तद्धमच्छिय जहण्णकालाविरोहेण गुणंतरं गदस्स जहणंतोमुहुत. मेत्तकालुवलंभा ।
उक्कस्सेण तिणि पलिदोवमाणि, तिणि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि, तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि ॥ ८१॥
एत्थ सादिरेयसद्दो दोसु वि तिपलिदोवमेसु संबंधणिज्जो, दोण्हं पच्चासत्तिवसेण एगत्तमुवगयाणं विसेसणरूवेण पयत्तादो । तम्हा मणुस-मणुसपज्जत्तएसु सादिरेयाणि तिण्णि पलिदोवमाणि, अण्णत्थ देसूणाणि । कुदो ? 'जहा उद्देसो तहा णिद्देसो' त्ति णायादो । कधं सादिरेयत्तं ? अट्ठावीससंतकम्मियमिच्छादिहिस्स पुवकोडितिहाए सेसे बद्धमणुसाउअस्स तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण सम्मत्तं घेत्तूण दंसणमोहणीयं खविय सम्मत्तेण
एक जीवकी अपेक्षा तीनों प्रकारके असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥८॥
क्योंकि, देखा है मार्गको जिसने ऐसे, मिथ्याष्टि, अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि अथवा संयतासंयत, अथवा प्रमत्तसंयत गुणस्थानोंसे आये हुए, तथा सर्व जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल रह करके जघन्य कालके अविरोधसे गुणस्थानान्तरको प्राप्त हुए जीवके जघन्य अन्तर्मुहूर्तप्रमाण काल पाया जाता है।
तीनों प्रकारके असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका यथाक्रमसे उत्कृष्ट काल तीन पल्योपम, तीन पल्योपम सातिरेक, और देशोन तीन पल्योपम है ।। ८१॥
यहां पर सातिरेक शब्द दोनों ही त्रिपल्योपमों पर संबद्ध करना चाहिए, क्योंकि प्रत्यासत्तिके वशसे एकत्वको प्राप्त हुए दोनों पदोंके विशेषणरूपसे यह शब्द प्रवृत्त हुआ है. इसलिये मनुष्य और मनुष्यपर्याप्तकोंमें तो साधिक तीन पल्योपम उत्कृष्ट काल है। और अन्यत्र अर्थात् मनुष्यनियों में, देशोन तीन पल्योपम उत्कृष्ट काल है। क्योंकि, 'जिस प्रकारसे उद्देश होता है, उसी प्रकारसे निर्देश होता है ' ऐसा न्याय है।
शंका- तीन पल्योपमसे सातिरेक अर्थात् अधिक काल कैसे संभव है ? ...
समाधान- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाले तथा पूर्वकोटीके त्रिभाग शेष रहने पर बांधी है मनुष्य आयुको जिसने ऐसे मिथ्यादृष्टि मनुष्यके तत्पश्चात् अन्तमुहूर्त जाकर सम्यक्त्वको ग्रहण करके दर्शनमोहनीयका क्षपण कर सम्यक्त्वके साथ देशोन
१ एक जीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८. २ उत्कर्षेण वणि पल्योपमानि सातिरेकाणि । स. सि. १, ८.
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