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१, ५, ५९. ]
काला गमे तिरिखकालपरूवणं
पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त - पंचिंदियतिरिक्खजोगिणीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वदा ॥ ५७ ॥
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कुदो ? ति विकाले पंचिदियतिरिक्खतियमिच्छादिट्ठिविरहिदपंचिदियतिरिक्खतियाणुवलंभा ।
एगजीवं पडुच जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ ५८ ॥
एक्को सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी संजदासंजदो वा दिट्ठमग्गो मिच्छत्तं पडिवण्णो । सब्वलहुमंतो मुहुत्तमच्छिय पुव्वुत्ताणमण्णदरं गुणं गदो । तेण अंतोमुहुत्तमिद वृत्तं ।
उकस्सं तिण्णि पलिदोवमाणि पुव्वकोडिपुधत्तेण अन्भहियाणि ।। ५९ ।।
तंजधा- एक्को देवो णेरइओ मणुस्सो वा अप्पिदपंचिंदियतिरिक्खवदिरित्ततिरिक्खो वा अप्पिदपंचिंदियतिरिक्खेसु उववण्णो । सण्णि- इत्थि- पुरिस- वुं सगवेदेसु
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पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमतियों में मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ ५७ ॥
क्योंकि, तीनों ही कालोंमें तीनों प्रकारके पंचेन्द्रिय तिर्यच मिथ्यादृष्टियोंसे रहित उक्त तीनों प्रकार के पंचेन्द्रिय तिर्यच नहीं पाये जाते हैं ।
एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों प्रकारके तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है || ५८ ॥
जिसने मिथ्यात्वका मार्ग पहले कई बार देखा है ऐसा एक सम्यग्मिथ्यादृष्टि अथवा असंयतसम्यग्दृष्टि, अथवा संयतासंयत तिर्यच मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। वहां पर सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त काल रद्द कर पूर्वोक्त गुणस्थानों में से किसी एक गुणस्थानको प्राप्त हुआ । इस लिए सूत्र में ' अन्तर्मुहूर्तकाल ' ऐसा कहा है ।
उक्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम है ॥ ५९ ॥
जैसे, एक देव, नारकी, मनुष्य, अथवा विवक्षित पंचेन्द्रिय तिर्यचसे विभिन्न अन्य तिर्यच जीव, विवक्षित पंचेन्द्रिय तिर्यचोंमें उत्पन्न हुआ। वहां पर संज्ञी स्त्री, पुरुष और
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