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३६६ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ५, ५४. देवो जादो । एवं तिरिक्खेसु असंजदसम्मादिहिस्स उक्कस्सकालो परूविदो।
संजदासजदा केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ ५४॥
कुदो ? तिसु वि कालेसु संजदासजदविरहिदतिरिक्खाभावा ।। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ५५ ॥
तं जहा- अट्ठावीससंतकम्मियमिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी वा परिणामपच्चएण संजमासंजमं गदो । सबलहुमंतोमुहुत्तमच्छिय पुव्वुत्ताणमेक्कदरं गदो ।
उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा ॥ ५६ ॥
एक्को तिरिक्खो मणुस्सो वा मिच्छादिट्ठी अट्ठावीससंतकम्मिओ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खसंमुच्छिमपज्जत्तमंडूक-कच्छ-मच्छवादीसु उबवण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो (१) विस्संतो (२) विसुद्धो (३) संजमासंजमं पडिवण्णो । एदेहि तीहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणपुवकोडिकालं संजमासंजममणुपालिदूण मदो देवो जादो ।
तिर्यंचोंमें असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट काल कहा ।
__ संयतासंयत तिथंच कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ ५४॥
क्योंकि, तीनों ही कालोंमें संयतासंयतोंसे रहित तिर्यंचोंका अभाव है। एक जीवकी अपेक्षा संयतासंयत तियंचका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ५५ ॥
वह इस प्रकार है- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला मिथ्यादृष्टि, अथवा भसंयतसम्यग्दृष्टि जीव परिणामों के निमित्तसे संयमासंयमको प्राप्त हुआ। वहां पर सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त काल रह करके पूर्वोक्त गुणस्थानोंमेंसे किसी एक गुणस्थानको प्राप्त हो गया । (इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त काल सिद्ध हुआ।)
___एक जीवकी अपेक्षा संयतासंयत तिर्यचका उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि वर्षप्रमाण है ।। ५६ ॥
____मोहकर्मकी अट्ठाईस कर्मप्रकृतियोंकी सत्तावाला एक तिर्यंच या मनुष्य मिथ्यादृष्टि, संक्षी पंचेन्द्रिय सम्मूञ्छिम पर्याप्त मंडूक, कच्छप आदि तिर्यंचों में उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियोसे पर्याप्त होता हुआ (१), विश्राम लेकर (२), और विशुद्ध होकर (३), संयमासंयमको प्राप्त हुआ। इन तीन अन्तर्मुहूर्तोंसे कम पूर्वकोटि कालप्रमाण संयमासंयमको परिपालन करके मरा और देव हो गया । (इस प्रकार सूत्रोक्त काल सिद्ध हुआ।)
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