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________________ १, ५, ४.] कालाणुगमे मिच्छादिहिकालपरूवणं [३२९ अणंतं कालं मिस्सयगहणद्धाए गमेदूर्ग' सई अगहिदगहणद्धा परिणमदि । एवमेदाहि दाहि अद्धाहि अणंतकालं गमिय सई गहिदगहणद्धा भवदि । एवमेदेण पयारेण जीवस्स कालो गच्छदि जाव एत्थतणगहिदगहणद्धासलागाओ अणंततं पत्ताओ त्ति । एवं दो परियदृणवारा गदा । पुणो णतं कालं मिस्सयद्धाए गमिय सई गहिदगहणद्धाए परिणमदि । एदेण पयारेण गहिदगहणद्धासलागाओ अणंतत्तं पत्ताओ। तदो सइमगहिदगहणद्धाए परिणमदि । एदेण वि पयारेण अणंतो कालो गच्छदि जाव एत्थतणअगहिदगहणद्धासलागाओ अणंतत्तं पत्ताओ त्ति । एसो तदियो परियट्टो। संपदि चउत्थपरियट्ट भणिस्सामो । तं जधा- अणंतकालं गहिदगहणद्धाए गमेदूण सई मिस्सयगहणद्धाए परिणमदि। एवमेदाहि दोहि अद्धाहि अणंतकालं गमेदि जाव एत्थतणमिस्सयगहगद्धासलागाओ अणंतत्तं पत्ताओ त्ति । तदो सइमगहिदगहणद्धाए परिणमदि । पुणो उवरि एदेण चेव कमेण कालो गच्छदि जाव पोग्गलपरियट्टचरिमसमओ त्ति' । पोग्गलपरियट्टआदिमसमए जे अनन्तत्वको प्राप्त हो जाती है (इस प्रकार प्रथम परिवर्तनवार व्यतीत हुआ)। पुनः इसके ऊपर अनन्तकाल मिश्रग्रहणकालकी अपेक्षा बिताकर एकवार अगृहीतग्रहणकाल परिणत होता है। इस प्रकार इन दोनों प्रकारके कालोसे अनन्तकाल बिताकर एकवार गृहीतग्रहणकाल होता है । इस तरह उक्त प्रकारसे जीवका काल तब तक व्यतीत होता हुआ चला जाता है जब तक कि यहांकी गृहीतग्रहणकालसम्बन्धी शलाकाएं भी अनन्तताको प्राप्त हो जाती हैं। इस प्रकार दो परिवर्तनवार व्यतीत हुए । पुनः अनन्तकाल मिश्रग्रहणकालके द्वारा बिताकर एकवार गृहीतग्रहणकालका परिणमन होता है। इस प्रकारसे गृहीतग्रहणकालकी शलाकाएं अनन्तताको प्राप्त हो जाती हैं। तत्पश्चात् एकवार अगृहीतग्रहणकालरूपसे परिणमन होता है। पुनः इस प्रकारसे भी अनन्तकाल तब तक व्यतीत होता है जब तक कि यहां पर भी अगृहीतग्रहणकालसम्बन्धी शलाकाएं अनन्तताको प्राप्त होती हैं। यह तीसरा परिवर्तन है। अब चतुर्थ परिवर्तनको कहते हैं। वह इस प्रकार है-अनन्तकाल गृहीतग्रहणकालसम्बन्धी बिताकर एकवार मिश्रग्रहणकालका परिवर्तन होता है। इस प्रकार इन दोनों प्रकारके कालोद्वारा अनन्तकाल बिताता है जब तक कि यहांकी मिश्रग्रहणकालसम्बन्धी शलाकाएं अनन्तताको प्राप्त होती हैं। इसके पश्चात् एकवार अगृहीतग्रहणकालरूपसे परिणमित होता है । इसके पश्चात् फिर भी इसके आगे इस ही क्रमसे पुद्गलपरिवर्तनके अन्तिम समय तक काल व्यतीत होता जाता है। (इस चतुर्थ परिवर्तनके समाप्त हो जानेपर) नोकर्मपुद्गलपरिवर्तनके १ प्रतिषु 'गमेदूण ण सई' इति पाठः । २ अगहिदमिस्सं गहिदं मिस्समगहिदं तहेव गहिदं च । मिस्सं गहिदमगहिदं गहिदं मिस्सं च अगदिदं च॥ गो. जी. जी. प्र.५६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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