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१, ४, १८०.] फोसणाणुगमे सण्णि-असण्णिफोसणपरूवणे
[ ३०७ तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । विहार-वेदण-कसायवेउवियपरिणदेहि अट्ठ चोद्दसभागा, मारणंतिय-उववादपरिणदेहि सव्वलोगो पोसिदो ।
सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था ओघं ॥ १७९॥
एदेसिमोघादो ण को वि' भेदो अत्थि, सण्णिरहिदसासणादीणमभावा । असण्णाहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, सव्वलोगों ॥ १८० ॥
सत्थाण-वेदण-कसाय-मारणंतिय-उववादपरिणदेहि असण्णीहि तिसु वि अद्धासु सबलोगो पोसिदो । विहारपरिणदेहि तिण्डं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो तिसु वि कालेसु पोसिदो। वेउब्बियपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो वट्टमाणे पोसिदो । तीदे पंच चोदसभागा त्ति वत्तव्यं ।
एवं सणिमग्गणा समत्ता ।
गुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, और चैक्रियिकपदपरिणत संशी मिथ्याडष्टि जीवोंने आठ बटे चौदह (8) भाग स्पर्श किये हैं। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत संशी जीवाने सर्वलोक स्पर्श किया है।
संज्ञी जीवोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७९ ।।
इन गुणस्थानोंकी स्पर्शनप्ररूपणाका ओघस्पर्शनप्ररूपणासे कोई भेद नहीं है, क्योंकि, संक्षित्वसे रहित सासादनादि गुणस्थानोंका अभाव है।
असंही जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? सर्वलोक स्पर्श किया है ॥१८॥
स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषाय, मारणान्तिक और उपपादपदपरिणत असंही जीवोंने तीनों ही कालों में सर्वलोक स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थानपदपरिणत जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र तीनों ही कालों में स्पर्श किया है। वैक्रियिकपदपरिणत असंही जीवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मनुष्यक्षेत्रसे भसंख्यातगुणा क्षेत्र वर्तमानकालमें स्पर्श किया है। अतीतकालमें पांच बटे चौदह (२४) भाग स्पर्श किये हैं. ऐसा कहना चाहिए ।
इस प्रकार संझीमार्गणा समाप्त हुई। १ प्रतिषु · कोरिथ' इति पाठः, म प्रतौ को छि' इति पाठः। ५ असंक्षिभिः सर्वलोकः स्पृष्टः । स. सि. १,८.
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