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________________ ३०४ ] - छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ४, १७०. पमत्तादिगुणट्ठाणाणं ओघभंगो, विसेसाभावा ।। सजोगिकेवली ओघं ॥ १७० ॥ एदं सुत्तं सुगम, ओघम्हि परूविदत्तादो । वेदगसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा त्ति ओघं ॥ १७१ ॥ एदस्स सुत्तस्स जेण अदीद-वट्टमाणपरूवणा मूलोघम्हि उत्तचदुगुणट्ठाण-अदीदवदृमाणपरूवणाए तुल्ला, तेण ओघत्तं जुञ्जदे । उवसमसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ।। १७२ ॥ वट्टमाणपरूवणाए सव्वपदाणं ओघत्तं होदु णाम, विसेसाभावा । अदीद-परूवणाए वि सत्थाणस्स तिरियलोगस्स संखेजदिभागमेत्तखेत्तुवलंभादो। विहार-वेदण-कसाय-उब्धियपदाणं य देसूण टु-चोद्दसभागमेत्तखेत्तुवलंभादो ओघत्तं जुज्जदे । किंतु मारणंतिय-उववाद प्ररूपणा ओघके समान है, क्योंकि, उसमें कोई विशेषता नहीं है। सयोगिकेवली जिनोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७० ॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, ओघमें इसका प्ररूपण किया जा चुका है। वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १७१॥ चूंकि, इस सूत्रकी अतीत और वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा मूलोघमें कही गई उक्त चारों गुणस्थानोंकी अतीत और वर्तमानकालिक प्ररूपणाके समान है, इसलिए ओघपना बन जाता है। औपशमिकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ।। १७२ ॥ शंका-वर्तमानकालिक स्पर्शनकी प्ररूपणामें सर्व पदोंके ओघपना भले ही रहा भावे क्योंकि, उसमें कोई विशेषता नहीं है। अतीतकालिक प्ररूपणामें भी सर्व पदोंके ओघपना रहा भावे; क्योंकि, अतीतप्ररूपणामें भी स्वस्थानपदका स्पर्शनक्षेत्र तिर्यग्लोकका संख्यातवां भागमात्र पाया जाता है । तथा, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, और वैक्रियिकपदोंका स्पर्शनक्षेत्र कुछ कम आठ बटे चौदह () भागप्रमाण पाये जानेसे ओघपना बन जाता है। १ क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टीना सामान्योक्तम् । स. सि. १, ८. २ औपशमिकसम्यक्त्वानामसंयतसम्यग्दृष्टीनां सामान्योक्तम् । स, सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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