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________________ १, ४, १६९.] फोसणा गमे खइयसम्मादिविफोसणपरूवणं [ ३०३ मणुस्सेसुप्पज्जमाणखइयसम्मादिडिपोसिदखेत्तं च घेण लब्भदे । एदम्मि खेते आणिमाणे देणजोयलक्खचाहल्लं रज्जुपदरं उड्डुं सत्तवग्गेण छिंदिय पदरागारेण ठइदे तिरियलोगस्स बाहल्लादो संखेज्जदिभागबाहल्लं जगपदरं होदि । एवं संजादे ओघत्तं कथं जुज्जदे ? ण, उववादविरहिद से सपद खेत्ते हि तुल्लत्तमावेक्खिय ओघत्ववत्तीए । संजदासंजद पहुडि जाव अजोगिकेवलीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १६९ ॥ एदस्स वट्टमाणपरूवणा खेत्तभंगा। सत्थाण-विहार- वेदण-कसाय-वेउब्विय परिणदेहि खइयसम्मादिट्ठिसंजदासंजदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो, संखेजा भागा वा, पोसिदा; खइयसम्मादिट्ठिसंजदासंजदाणं तिरिक्खेसु असंभवादो । मारणंतियपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणो तीदे काले पोसिदो, पणदालीसजोयणलक्खविक्खंभेण संखेजरज्जुआयदपोसणखेतुवलं भादो । क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंसे स्पर्शित क्षेत्रको, तथा वहांसे चयकर मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले क्षायिक सम्यग्दृष्टियों से स्पर्शित क्षेत्रको ग्रहण करके तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शनक्षेत्र पाया जाता है । इस उक्त क्षेत्रके निकालनेपर कुछ कम एक लाख योजन बाहल्यवाले राजुप्रतरको ऊपर से सात वर्ग (४९) द्वारा छेदकर प्रतराकार से स्थापित करने पर तिर्यग्लोक के बाहल्यसे संख्यातवें भाग बाहल्यवाला जगप्रतर होता है । शंका- ऐसा होने पर सूत्रोक्त ओघपना कैसे घटित होगा ? समाधान - नहीं, क्योंकि, उपपादपदको छोड़ शेष पदोंके क्षेत्रोंके साथ समानता देखकर ओघपना बन जाना है । क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में संयतासंयत गुणस्थान से लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १६९ ॥ इस सूत्र की वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकपदपरिणत क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मनुष्यक्षेत्रका संख्यातवां भाग, अथवा संख्यात बहुभाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीवोंका तिर्यचों में होना असंभव है। मारणान्तिकपदपरिणत क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र अतीतकाल में स्पर्श किया है, क्योंकि, पैंतालीस लाख योजन विष्कम्भके साथ संख्यात राजुप्रमाण आयत स्पर्शनक्षेत्र पाया जाता है । प्रमत्तादि गुणस्थानोंकी स्पर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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