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________________ १, ४, १६६. फोसणाणुगमे भविय-अभवियफोसणपरूवणं [ ३०१ एवं सुत्तं सुगम, तदो ण किंचि वत्तव्यमस्थि । __एवं लेस्सामग्गणा समत्ता । भवियाणुवादेण भवसिद्धिएस मिच्छादिटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ १६५॥ एदं सुत्तं सुगमं, वट्टमाणादीदकाले अस्सिदूण ओघम्हि परूविदत्तादो । अभवसिद्धिएहिं केवडियं खेत्तं पोसिदं, सव्वलोगों ॥ १६६॥ सत्थाण-वेदण-कसाय-मारणंतिय-उववादपरिणदेहि तिसु वि कालेसु सबलोगो पोसिदो । विहार वेउव्यियपरिणदेहि वट्टमाणकाले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणो; असंखेज्जरासीसु तेसिमसंखेज्जदिभागमेत्तो तत्थ तत्थ अभव्वरासि त्ति उवदेसादो । अदीदेण अट्ट चोदसभागा पोसिदा । एवं भवियमग्गणा समत्ता। यह सूत्र सुगम है, इसलिए कुछ भी अन्य वक्तव्य नहीं है। इसप्रकार लेश्यामार्गणा समाप्त हुई। भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्यसिद्धिक जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वर्तमान और अतीतकालको आश्रय करके ओघमें इसका प्ररूपण हो चुका है। अमव्यसिद्धिक जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? सर्वलोक स्पर्श किया स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषाय, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत अभव्यसिद्धिक जीवोंने तीनों ही कालों में सर्वलोक स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकपदपरिणत अभव्यसिद्धिक जीवोंने वर्तमानकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। क्योंकि, असंख्यात प्रमाणवाली पंचेन्द्रियादि राशिओंमें उन उनके असंख्यातवें भागप्रमाण वहां यहां पर अर्थात् उन उन विवक्षित राशिओंमें अभव्यराशि होती है, इस प्रकार आचार्योंका उपदेश पाया जाता है। उक्त जीवोंने अतीतकालमें आठ बटे चौदह (ई) भाग स्पर्श किये हैं। ___ इसप्रकार भव्यमार्गणा समाप्त हुई। १ भष्यानुवादेन भन्यानो मिप्यादृष्टयाधयोगकेवल्यन्तान सामान्योक्तं स्पर्शनम् । स. सि.१, २ अमन्यैः सर्वलोकः स्पृष्टः । स. सि. १, 6. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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