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१, ४, ८५.] फोसणाणुगमे कायजोगिफोसणपरूवणं दिट्ठीहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । उववादो णत्थि । मारणंतियपरिणदेहि सत्त चोदसमागा देरणा पोसिदा । केण ऊणा ? इसिपब्भारपुढवीए उवरिमबाहल्लेण ।
सम्मामिच्छादिट्टीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं,लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ८४॥
एदस्स सुत्तस्स परूवणा खेत्ताणिओगद्दारोरालियकायजोगसम्मामिच्छादिट्ठिसुत्तपरूवणाए तुल्ला । सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउबियपरिणदेहि ओरालियसम्मामिच्छादिट्ठीहि तीदाणागदकालेसु तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । मारणंतिय-उववादा णत्थि ।
__ असंजदसम्मादिट्ठीहि संजदासंजदेहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ८५॥
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सासादनसम्यग्दृष्टियोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। इन जीवोंके उपपादपद नहीं होता है। मारणान्तिकपदयरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह () भाग स्पर्श किये हैं।
शंका-यहांपर कुछ कमसे कितना कम क्षेत्र समझना चाहिए ?
समाधान-ईषत्प्राग्भार पृथिवीके उपरिम भागके बाहल्यप्रमाणसे कुछ कम क्षेत्र समझना चाहिए।
औदारिककाययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ।। ८४ ॥
इस सूत्रकी प्ररूपणा क्षेत्रानुयोगद्वारमें वर्णित औदारिककाययोगी सम्यग्मिथ्याधियोके क्षेत्रका वर्णन करनेवाले सूत्रकी प्ररूपणाके तुल्य है। स्वस्थानस्वस्थान,विहारवत्स्वस्थान, घेदना, कषाय और वैक्रियिकपदपरिणत औदारिककाययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंने भतीत और अनागतकाल में सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वापसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। औदारिककाययोगी सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवों के मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद, ये दो पद नहीं होते हैं।
__ औदारिककाययोगी, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ८५ ॥
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