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________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ४, ८२. २६० ] वेउव्वयपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । तीदाणागदेसु तिन्हं लोगाणं संखेज्जदिभागो, दोलोगेहिंतो असंखेज्जगुणो, वाउक्काइयdoफोसणस पाघण्णविवक्खाए । विहारपरिणदेहि ओरालियकाय जोगिमिच्छादि । हि बट्टमाणकाले तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । तीदाणागदकालेसु तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदा । सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ८२ ॥ एदस्स वट्टमाणकाल संबंधिसुत्तस्स खेत्ताणिओगद्दारे ओरालियकायजोगिस सणसुत्तस्सेव परूवणा कादव्वा । सत्त चोइसभागा वा देसूणा ॥ ८३ ॥ सत्थाणसत्याण-विहारख दिसत्थाण - वेदण-कसाय- वेउच्त्रियपरिणदेहि सासणसम्मा रक्त जीवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, और मनुष्यक्षेत्र से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । अतीत और अनागत, इन दोनों कालों में सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका संख्यातवां भाग, और नरलोक तथा तिर्यग्लोक, इन दोनों लोकों से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि, यहां पर वायुकायिक जीवोंके वैक्रियिकपदसम्बन्धी स्पर्शनक्षेत्रकी प्रधानतासे विवक्षा की गई है । विहारवत्स्वस्थानपद से परिणत औदारिककाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंने वर्तमानकाल में सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अदाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। उन्हीं जीवोंने अतीतकार और अनागतकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । औदारिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ८२ ॥ इस वर्तमानकालसम्बन्धी सूत्रकी क्षेत्रानुयोगद्वार में कहे गये औदारिककाययोगी सासादन्यग्दृष्टियोंकी क्षेत्रप्ररूपणा करनेवाले सूत्रके समान स्पर्शनप्ररूपणा करना चाहिए । उक्त जीवोंने अति और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम सात बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ८३ ॥ स्वस्थान स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रिमिकपदपरिणत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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