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२५२ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ४, ८६. सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउन्धिय-मारणंतियपरिणदेहि असंजदसम्मादिट्ठीहि संजदासंजदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेजगुणो वट्टमाणद्धाए फोसिदो। ... छ चोदसभागा वा देसूणा ॥८६॥
___ सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउब्बियपरिणदेहि असंजदसम्मादिट्ठीहि संजदासंजदेहि तिहं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो। एसो 'वा' सद्दसूचिदत्थो । मारणंतिय (-उववाद-) परिणदेहि छ चोद्दसभागा देसूणा पोसिदा, अच्चुदकप्पादो उवरि असंजदसम्मादिद्विसंजदासंजदाणमुववादाभावादो ।
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव सजोगिकेवलीहि केवडियं खेतं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ८७॥
एदेसिमट्टण्हं गुणट्ठाणाणं तिण्णि वि काले अस्सिद्ग परूवणं कीरमाणे खेत्त
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिकसमुद्रातपदपरिणत असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, और मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र वर्तमानकालमें स्पर्श किया है।
औदारिककाययोगी उक्त दोनों गुणस्थानवी जीवोंने अतीत और अनागतकालकी अपेक्षा कुछ कम छह पटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ८६ ॥
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धात, इन पदोंसे परिणत औदारिककाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । यह 'वा' शब्दसे सूचित अर्थ है । मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह (8) भाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि, अच्युतकल्पसे ऊपर असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवोंका उपपाद नहीं होता है।
प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी बौदारिककाययोगी जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां माग स्पर्श किया है ॥ ८७॥
इन आठों गुणस्थानोंकी तीनों ही कालोंका आश्रय करके स्पर्शनप्ररूपणा करनेपर
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