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२४६ छक्खडागमे जीवाण
[१, ४, ६४. पचिंदियअपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेजदिभागो ॥ ६१॥
एदस्स सुत्तस्स परूबणा खेत्तभंगा। उत्तमेव किमिदि पुणो वि उच्चदे, फलाभावा ? ण, मंदबुद्धिभवियजणसंभालणदुवारेण फलोवलंभादो।
सव्वलोगो वा ॥६५॥
सत्थाण-वेदण-कसायपरिणदेहि तीदे काले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । एत्थ पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ताणं व तिरियलोगस्स संखेजदिभागत्तं दरिसेदव्यं । एसो 'वा' सद्दसूचिदत्थो । मारणंतिय उववादपरिणदेहि सबलोगो फोसिदो, सबलोगम्हि एदेहि पदेहि सह सव्यअपज्जत्ताणं गमणागमणपडिसेहाभाषा ।
एवमिंदियमग्गणा समत्ता।
लन्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंने कितना क्षेत्र पर्श किया है ? लोकका असं. ख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ६४ ॥
इस सूत्रको स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है।
शंका-कही गई बात ही पुनः क्यों कही जाती है, क्योंकि, कहे हुएके पुनः कहने में कोई फल नहीं है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, मंदबुद्धि भव्यजनोंके संभालनेकी अपेक्षा पुनः कथन करने का फल पाया जाता है।।
लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श किया है ॥६५॥
स्वस्थानस्वस्थान, येदना और कषायसमुद्धातपरिणत उक्त लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंने अतीतकाल में सामान्यलोक आदि तीन लोकोका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातयां भाग और मनुष्यक्षेत्रसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । यहां पर लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवोंके समान ही तिर्यग्लोकका संख्शतवां भाग दिखाना चाहिए । यह सूत्रोक्त 'या' शब्दसे सूचित अर्थ है । पारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपरिणत लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंने सर्घलोक स्पर्श किया है, क्योंकि, सम्पूर्ण लोकमें इन दोनों पदोंके साथ सभी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त जीवोंके गमन और आगमनके प्रतिषेधका अभाव है।
इसमझार इन्द्रियमाणा समाप्त हुई।
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