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१, ४, ५९. ]
• फोसणानुगमे विगलिंदियफोसण परूवणं
असंखे गुणो फोसिदो । ऐसा वापरूवणा पुव्युत्तर संभालणणिमित्तं कदा |
रावलोगो वा ॥ ५९ ॥
एत्थ
चाव
6 वा
' सद्दट्टो उच्चदे- चीइंदिय-तीइंदिय- चउरिदिएहि तेसिं चेव पञ्जतेहि य सत् धाणसत्याण-विहारव दिसत्थाण- वेदण-कसाय परिणदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरि फ्लोगस्स संखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो अदीदकाले पोसिदो । विगलिंदि यरूत्थापत्था सयं पह पव्त्रदस्स परभागे चेत्र होंति त्ति तो परभागे पुव्त्रं व पदरागारेण हड़्दै विगलिंदियसत्थाणसत्थाणखेत्तं तिरियलोगस्स संखेज्जदिमागमेत्तं होदि | सेसपदेहि वइरि प्रबंधे विगलिंदियां मन्यत्थ तिरियपदररूभंतरे होंति त्ति पदरागारेण इदे एवं विखेत्तं विरियलोगस्स संखेज्ज" दिभागमेत्तं चैव हेोदि । मारणंतियजतेहि सत्थाण- वेदण-कसायउववादपरिणदेहि सव्वलोगों पासिदो । तेसिं चेत्र अप दिभागो, अड्डाइज्जादो परिणदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्ज. असंखेज्जगुणो पोसिदो | मारणंतिथ उववाद परिणदेहिं सव्वलोगो पोस
। पंचिदिय
[ २४३
वर्तमानकालिक स्पर्शनक्षेत्रकी प्ररूपणा पूर्व और उत्तर अर्थके अर्थात् अतीत और अति कालसम्बन्धी स्पर्शनश्लेत्र के संभालने के लिए की गई है ।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव तथा उन्हींके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श किया है ॥ ५९ ॥
यहां पर पहले 'वा' शब्दका अर्थ कहते हैं -- स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना और कषायसमुद्रातपरिणत द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और उनके ही पर्याप्त जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और मानुषक्षेत्र से असंख्यात्तगुणा क्षेत्र अतीतकाल में स्पर्श किया है ।
स्वस्थानस्वस्थानस्थ विकलेन्द्रिय जीव स्वयम्प्रभपर्वतके परभागमें ही होते हैं, इसलिए परभागवर्ती क्षेत्रको पूर्वके समान प्रतराकारसे स्थापित करनेपर विकलेन्द्रिय जीवोंका स्वस्थानस्वस्थानक्षेत्र तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमात्र होता है। शेष पदोंकी अपेक्षा वैरी जीवोंके सम्बन्धसे विकलेन्द्रिय जीव सर्वत्र तिर्यक्प्रतर के भीतर ही होते हैं, इसलिए प्रतराकार से स्थापित करनेपर यह क्षेत्र भी तिर्यग्लोक के संख्यातवें भागमात्र ही होता है । मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपरिणत उक्त जीवोंने सर्वलोक स्पर्श किया है। उन्हीं जीवों में से स्वस्थान स्वस्थान, वेदना और कषायसमुद्धातपरिणत अपर्याप्त जीवोंने सामान्य लोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग तथा अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकसमुद्धात तथा उपपादपदपरिणत विकलेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंने सर्वलोक स्पर्श किया है। पंचेन्द्रियतिर्यच अपर्याप्त जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र
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