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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, ४, ५०.
सव्वलोगो पोसिदो | एवं बादरेइंदियअपज्जत्ताणं पि वृत्तव्वं । वरि वेउव्वियं णत्थि । मुहुमेइंदिय- सुहुमे इंदियपज्जत्तापज्जत्तएहि सत्थाणसत्थाण- वेदण- कसाय मारणंतिय उववादपरिणदेहि तिसु वि कालेसु सच्चलोगो पोसिदो, 'सुहुमा जल-थलागासे सव्वत्थ होंति ति वयणादो ।
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बीइंदिय· तीइंदिय- चउरिंदिय-तस्सेव पज्जत्त-अपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥ ५८ ॥
एदस्सत्थो - वेइंदिय-तेइंदिय - चउरिदिएहि तेसिं पब्जतेहि य सत्थाणसत्याणविहारवदिसत्थाण- वेदण - कसाय परिणदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो | मारणंतिय उववादपरिणदेहि तिह लोगाणमसंखेज्जदिभागो, दोलोगे हिंतो असंखेज्जगुणो पोसिदो । तेसिं चेव अपजत्तेहि: संस्थाणसत्थाण-वेदण-कसायपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो
सर्वलोक स्पर्श किया है। इसी प्रकारले बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका भी स्पर्शनक्षेत्र कहना चाहिए । विशेष बात यह है कि उनके वैक्रियिकसमुद्धात नहीं होता है । स्वस्थान स्वस्थान, वेदना, कषाय, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपरिणत सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रियपर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रियअपर्याप्त जीवोंने तीनों ही कालोंमें सर्वलोक स्पर्श किया है, क्योंकि, 'सूक्ष्मकायिकजीव जल, स्थल और आकाश में सर्वत्र होते हैं' ऐसा आगमका वचन है ।
द्वीन्द्रिय द्वीन्द्रियपर्याप्त, द्वीन्द्रिय अपर्याप्त त्रीन्द्रिय, त्रीन्द्रियपर्याप्त, श्रीन्द्रियअपर्याप्त; चतुरिन्द्रिय, चतुरिन्द्रियपर्याप्त और चतुरिन्द्रियअपर्याप्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ५८ ॥
इस सूत्र का अर्थ कहते हैं - स्वस्थानस्वस्थान, विहारपत्स्वस्थान, वेदना और कषायसमुद्धात से परिणत द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और उनके पर्याप्त जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत उक्त जीवोंने 'सामान्यलोक आदि तीन लोकोका असंख्यातवां भाग और नरलोक तथा तिर्यग्लोक, इन दोनों लोकोंसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । स्वस्थानस्वस्थान, वेदना और कषायसमुद्धातपरिणत उन्हीं द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मानुषक्षेत्र से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । यह
१ विकलेन्द्रियैर्लोकस्यासंख्येयभागः सर्वलोको वा । स. सि. १, ८.
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