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२३८] ' छक्खंडागमे जीवडाणं
[१, १, ५३. कप्पवासियदेवेहि आहुट्ठ-चोदसभागा देसूणा पोसिदा। लंतय-काविट्ठदेवेहि चत्तारि चोहसभागा देसूणा पोसिदा । सुक्क महासुकदेवेहि अद्धपंचम-चोदसभागा देसूणा पोसिदा । सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवेहि पंच चोहसभागा देखूणा पोसिदा । णवरि सम्मामिच्छाइट्ठीणं मारणंतिय-उववादा णत्थि ।
__ आणद जाव आरणच्चुदकप्पवासियदेवेसु मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ५३॥
एदस्स सुत्तस्स वट्टमाणखेत्तपरूवयस्स अत्थो पुब्वं परूविदो त्ति पुणो ण उच्चदे। छ चोदसभागा वा देसूणा पोसिदा ॥ ५४॥
मिच्छादिद्वि-सासणसम्मादिवि-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीहि सत्थाणसत्थाणपदपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो। एसो 'वा' सद्दट्ठो। विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-उब्बिय-मारणंतियपरिणदेहि छ चोद्दस
तीन बटे चौदह (२४) भाग स्पर्श किये हैं। लान्तव और कापिष्ठ कल्पवासी देवोंने कुछ कम चार बटे चौदह (४) भाग स्पर्श किये हैं। शुक्र और महाशुक्र कल्पवासी देवोंने कुछ कम साढ़े चार बटे चौदह (३) भाग स्पर्श किये हैं। शतार और सहस्रार कस्पवासी देवोंने कुछ कम पांच बटे चौदह (३५) भाग स्पर्श किये हैं। विशेष बात यह है कि सम्य. मिथ्यारष्टि देवोंके मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद, ये दो पद नहीं होते हैं। - आनतकल्पसे लेकर आरण-अच्युत तक कल्पवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ५३ ॥
वर्तमानकालिक स्पर्शनक्षेत्रके प्ररूपक इस सूत्रका अर्थ पहले कहा जा चुका है, इसलिए पुन: नहीं कहा जाता है। - चारों गुणस्थानवर्ती आनतादि चार कल्पवासी देवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं। ५४ ।।
स्वस्थानस्वस्थानपदपरिणत मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्याहाट और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातयां भाग और मनुष्य लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यह 'धा' शब्दका अर्थ हुआ । विहारवत्स्वस्थान, बेपना, कपाय, वैकियिक और मारणान्तिकसमुद्धात, इन पदोंसे परिणत उक्त जीवोंने कुछ कम
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