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________________ १.६८ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ४, ८. ट्ठियपरूवणा खेत्ततुल्ला। ... छ चोदसभागा वा देसूणा ॥ ८ ॥ पुव्वं वट्टमाणकालविसिट्ठखेत्तं परूविदमिदि कुटु इदं सुत्तमदीदकालसंबंधीदि अवगम्मदे । अणागदकालसंबंधी ण होदि, तेण ववहाराभावादो। अधवा अदीदाणागदकालविसिट्टखेत्ताणं परूवयाणि पच्छिमसव्यसुत्ताणि त्ति णिच्छओ कायव्यो, उभयत्थ विसेसामावादो । सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय वेउव्वियसमुग्घादगदेहि संजदासंजदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइजादो असंखेजगुणो फोसिदो । एत्थ सत्थाणसत्थाणखेत्ताणयणविधाणं वुच्चदे सयंभरमणसमुद्दविक्खंभो दोहि वि पासेहि सादिरेगमेगरज्जुअद्धपमाणं होदि । सयंपहपव्वदपरभागखेत्तं पि दोहि वि पासेहि एगरज्जु-अट्ठमभागमेतविक्खंभो होदि । ते दो वि मेलिदे पंचट्ठभागा होति । एदे रज्जुविक्खंभम्हि अवणिदे तिण्णि अट्ठभागा होति । एदम्हि खेत्ते सुजमंडलागारेण संहिदे भोगभूमिपडिभागे णत्थि संजदासंजदा। बाहि प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके तुल्य है। संयतासंयत जीवोंने अतीतकालकी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ८ ॥ पूर्व में वर्तमानकालविशिष्ट क्षेत्रका प्ररूपण किया जा चुका है, इसलिए यह सूत्र अतीतकालसम्बन्धी है, यह बात जानी जाती है। किन्तु यह अनागत (भविष्य ) काल सम्बन्धी नहीं है, क्योंकि, उसके साथ व्यवहारका अभाव है। अथवा, पीछेके सभी सूत्र अति और अनागतकाल विशिष्ट क्षेत्रोंकी प्ररूपणा करनेवाले हैं, ऐसा निश्चय करना चाहिए, क्योंकि, भूतकाल और भविष्यकालमें स्पर्शनकी अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है। स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनालमुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धात यतासंयतोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। अब यहांपर संयतासंयत जीवोंके स्वस्थानस्वस्थानक्षेत्रके निकालनेका विधान हैं--- _स्वयम्भूरमणसमुद्रका विष्कम्भ दोनों ही पार्श्व भागोंसे साधिक एक राजुके अर्धप्रमाण है। स्वयंप्रभपर्वतका परभागवर्ती क्षेत्र भी दोनों ही पार्श्व भागोंकी अपेक्षा एक राजुके अष्टमभागमात्र विष्कम्भवाला है। ये दोनों ही विष्कम्भ मिला देनेपर एक राजुके आठ भागोंमेंसे पांच भाग प्रमाण (१) क्षेत्र हो जाता है। ये पांच बटे आठ (१) भाग राजुके विष्कम्भमेंसे निकाल देनेपर तीन बटे आठ (३) भाग अवशिष्ट रहते हैं । इस तीन बटे आठ (1) भागवाले सूर्यमंडलके आकारसे संस्थित और भोगभूमिप्ले प्रतिबद्ध क्षेत्रमें संयतासंयत जीव नहीं होते हैं। किन्तु बाहरी पांच बटे आठ (१) भागोंमें जम्बूद्वीप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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