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१, ४, ४.] फोसणाणुगमे सासणसम्माइडिफोसणपरूवणं
[१६३ होति । ण च एवं, संताणिओगद्दारे तत्थ एकमिच्छादिद्विगुणप्पदुप्पायणादो' दव्वाणिओगद्दारे वि तत्थ एगगुणट्ठाणदव्यस्स पमाणपरूवणादो च। को एवं भणदि जधा सासणा एइंदिएसुप्पज्जति ति । किंतु ते तत्थ मारणंतियं मेल्लंति त्ति अम्हाणं णिच्छ ओ। ण पुण ते तत्थ उप्पज्जंति त्ति, छिण्णाउअकाले तत्थ सासणगुणाणुवलंभादो । जत्थ सासणाणमुववादो णत्थि, तत्थ वि जदि सासणा मारणंतियं मेल्लंति, तो सत्तमपुढविणेरइया वि सासणगुणेण सह पंचिंदियतिरिक्खेसु मारणंतियं मेल्लंतु, सासणतं पडि विसेसाभावादो? ण एस दोसो, मिण्णजादित्तादो। एदे सत्तमपुढविणेरइया पंचिंदियतिरिक्खेसु गम्भोवक्कंतिएसु चेव उप्पज्जणसहावा, ते पुण देवा पंचिंदिएसु एइंदिएसु य उप्पज्जणसहावा, तदो ण समाणजादीया । जं जाए जादीए पडिवणं, तं ताए चेव जादीए होदि त्ति पडिवज्जेदव्वं, अण्णहा अणवत्थापसंगादो। तम्हा सत्तमपढविणेरइया सासणगुणेण सह देवा इव मारणंतियं
शंका-यदि सासादनसम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो उनमें (वहांपर) दो गुणस्थान प्राप्त होते हैं। किन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि, सत्प्ररूपणा अनुयोगद्वारमें, एकेन्द्रियों में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही बताया गया है, तथा द्रब्यानुयोगद्वारमें भी उनमें एक ही गुणस्थानके द्रव्यका प्रमाण-प्ररूपण किया गया है।
समाधान-कौन ऐसा कहता है कि सासादनसम्यग्दृष्टि जीव एकेन्द्रियों में उत्पा होते हैं ? किन्तु वे उस गुणस्थानमें मारणान्तिकसमुद्धातको करते हैं, ऐसा हमारा निश्चय है। न कि वे उस गुणस्थानमें, अर्थात् सासादनसम्यग्दृष्टियों में उत्पन्न होते हैं। क्योंकि, उनमें आयुष्यके छिन्न होने के समय सासादनगुणस्थान नहीं पाया जाता है। ___ शंका-जहां पर सासादनसम्यग्दृष्टियोंका उत्पाद नहीं है, वहां पर भी यदि सासादनसम्यग्दृष्टि जीव मारणान्तिकसमुद्धातको करते हैं, तो सातवीं पृथिवीके नारकियोंको सासादनगुणस्थानके साथ पंचेन्द्रिय तिर्यचों में मारणान्तिकसमुद्धात करना चाहिए, क्योंकि, सासादन गुणस्थानत्वकी अपेक्षा दोनोंमें कोई विशेषता नहीं है, अर्थात् समानता है ?
___ समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, देव और नारकी इन दोनों की भिन्न जाति है। ये सातवीं पृथिवीके नारकी गर्भजन्मवाले पंचेद्रियों में ही उपजनेके स्वभाववाले है, और वे देव पंचेन्द्रियों में तथा एकेन्द्रियों में उत्पन्न होनेरूप स्वभाववाले हैं, इसलिए दोनों समान जातीय नहीं हैं। जो जिस जातिमें प्रतिपन्न है, अर्थात् स्वीकृत है, वह उसी ही जातिका माना जाता है, ऐसा स्वीकार करना चाहिए, अन्यथा अनवस्थादोषका प्रसंग आ जायगा । इसलिए सातवीं पृथिवीके नारकी सासादनगुणस्थानके साथ देवोंके समान मार
१ एइंदिया बीइंदिया तीइंदिया चउरिदिया असपिणपचिंदिया एक्कम्मि चेव मिच्छाइविटाणे । जी.सं. सू. ३६. २ जी. द. सू. ७४-७६.
३ प्रतिषु । मेल्लंति ' इति पाठः ।
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