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१६२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ४, १. संखेज्जरूवेहि भागे हिदे वेंतरावासा होति । ण एस कमो भवणवासिय-सोधम्मादीणं, तत्थ संखेज्जेसु भवणविमाणेसु असंखेज्जजोयणायामेसु असंखेज्जा देवा देवीओ होति । कुदो ? तेसिमसंखेज्जत्तण्णहाणुववत्तीदो। पुणो वेंतरावासे अप्पणो विमाणभंतरसंखेज्जघणंगुलेहि गुणिदे वेंतरदेवसासणसम्माइटिसस्थाणखत्तं होदि । एदाणि तिणि वि खेत्ताणि एगट्ठ मेलिदे तिरियलोगस्स संखेजदिभागो होदि। विहारवदिसत्थाण-वेदण कसाय-वेउवियसमुग्धादगदेहि अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा फोसिदा । केत्तियमेत्तेणूणा ? तदियपुढवीए हेडिल्लजोयणसहस्सेण । मारणंतियसमुग्धादगदेहि बारह चोद्दसभागा देसूणा फोसिदा । तं जहा- मेरुमूलादो उवरि जावीसिपब्भारपुढवि त्ति सत्त रज्जू, हेट्ठा जाव छट्ठी पुढवि त्ति पंच रज्जू । एदाओ मेलिदे सासणमारणंतियखेचायामो होदि । णवरि हेहिमजोयणसहस्सेण ऊणो त्ति वत्तव्यो । जदि सासणा एइंदिएसु उप्पज्जंति, तो तत्थ दो गुणट्ठाणाणि
ही व्यन्तर देव होते हैं, इसलिए संख्यात रूपोंसे भाग देने पर व्यन्तर देवोंके आवासोंकी संख्या हो जाती है। किन्तु यह क्रम भवनवासी और सौधर्मादि कल्पवासी देवोंके नहीं हैं, क्योंकि, उनमें असंख्यात योजन आयामवाले संख्यात भवनों और विमानोंमें असंख्यात देव और देवियां रहती हैं। कारण, यदि ऐसा न माना जाय, तो उनकी राशिके असंख्यातपना नहीं बन सकता है। पुनः व्यन्तरोंके आवासक्षेत्रको अपने विमानोंके भीतरी संख्यात घनांगुलोंसे गुणित करनेपर सासादनसम्यग्दृष्टि व्यन्तर देवोंका स्वस्थानक्षेत्र हो जाता है। इन तीनों ही क्षेत्रोंको अर्थात् सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यंचोंके स्वस्थानक्षेत्रको, सासादनसम्यग्दृष्टि ज्योतिष्क देवोंके स्वस्थानक्षेत्रको और सासादनसम्यग्दृष्टि व्यन्तर देवोंके स्वस्थानक्षेत्रको इकडे मिलानेपर तिर्यग्लोकका असंख्यातवां भाग होता है। विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धातगत सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने लोकनालीके चौदह भागों से देशोन आठ भागप्रमाण क्षेत्रको स्पर्श किया है।
शंका-यहां देशोनसे तात्पर्य कितने प्रमाण क्षेत्रसे न्यून है ?
समाधान-तीसरी पृथिवीके नीचेके एक हजार योजनप्रमाण क्षेत्रसे न्यून क्षेत्र देशोनसे अभीष्ट है।
मारणान्तिकसमुद्धातगत सासादनसम्यग्दृष्टियोंने लोकनालीके चौदह राजुओंमेसे देशोन बारह भागप्रमाण क्षेत्रको स्पर्श किया है। वह इस प्रकार से जानना चाहिएसुमेरुपर्वतके मूलभागसे लेकर ऊपर ईषत्प्राग्भारपृथिवी तक सात राजु होते है, और नीचे छठी पृथिवी तक पांच राजु होते हैं। इन दोनों को मिला देनेपर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके मारणान्तिकक्षेत्रकी लम्बाई हो जाती है। विशेष बात यह है कि छठी पृथिवीके नीचेके एक हजार योजनसे न्यून क्षेत्र यहांपर भी कहना चाहिए।
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