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________________ छक्खंडागमे जीवाणं [१, २, १. एयदवियम्मि जे अस्थपज्जया क्यणपज्जया चावि । तीदाणागदभूदा तावदियं तं हवदि दव्वं ॥ ४॥ एवं ताणं भेदो भवदु णाम, किंतु दव्वगुणपरूवणादारेणेव दव्वस्स परूवणा भवदि, अण्णहा दव्वपरूवणोवायाभावादो । उत्तं च नानात्मतामप्रजहत्तदेकमेकात्मतामप्रजहच्च नाना । अंगांगिभावात्तव वस्तु यत्तत् क्रमेण वाग्वाच्यमनन्तरूपम् ॥ ५॥ तदो दव्वगुणे पमाणे परूविदे दव्यं परूविदं चेव (एवं मुत्ते दव्वपमाणाणं परूवणा अत्थि त्ति इंदसमासो वि ण विरुज्झदे । सेससमासाणमेत्थ संभयो णत्थि । ते सब्बे पि समासा केत्तिया ? छच्चेव भवंति । उत्तं च बहुव्रीह्यव्ययीभावो द्वन्द्वस्तत्पुरुषो द्विगुः । कर्मधारय इत्येते समासाः षट् प्रकीर्तिताः ॥ ६ ॥ किमिदि इदरेसिं संभवो णत्थि ? एत्थ तदत्थाभावादो । को तेसिमत्थो ? एक द्रव्यमें अतीत, अनागत और 'अपि' शब्दसे वर्तमान पर्याय रूप जितने अर्थपर्याय और व्यंजनपर्याय हैं तत्प्रमाण वह द्रव्य होता है ॥ ४ ॥ __यद्यपि इसप्रकार द्रव्य और प्रमाणमें भेद रहा आवे, फिर भी द्रव्यके गुणोंकी प्ररूपणाके द्वारा ही द्रव्यकी प्ररूपणा हो सकती है, क्योंकि, द्रव्यके गुणोंकी प्ररूपगाके विना द्रव्यप्ररूपणाका कोई उपाय नहीं है। कहा भी है अपने गुणों और पर्यायोंकी अपेक्षा नानास्वरूपताको न छोड़ता हुआ वह द्रव्य एक है और अन्वयरूपसे एकपनेको नहीं छोड़ता हुआ वह अपने गुणों और पर्यायोंकी अपेक्षा नाना ह । इसप्रकार अनन्तरूप जो वस्तु है वही, हे जिन, आपके मतमें क्रमशः अंगांगीभावसे वचनोंद्वारा कही जाती है ॥ ५॥ __ अतः द्रव्यके गुणरूप प्रमाणके प्ररूपण कर देने पर द्रव्यका कथन हो ही जाता है। इसप्रकार सूत्रमें द्रव्य और प्रमाणकी प्ररूपणा है ही, अतएव द्वन्द्वसमास भी विरोधको प्राप्त नहीं होता है । इसप्रकार तत्पुरुष, कर्मधारय और द्वन्द्व समासको छोड़कर शेष समासोंकी यहां संभावना नहीं है। शंका-वे संपूर्ण समास कितने हैं ? समाधान-वे समास छह ही हैं। कहा भी है बहुव्रीहि, अव्ययीभाव, द्वन्द्व, तत्पुरुष, द्विगु और कर्मधारय, इसप्रकार ये छह समास कहे गये हैं ॥ ६॥ शंका--यहां द्रव्यप्रमाण इस पदमें उपर्युक्त तीन समासोंको छोड़कर दूसरे समासोंकी संभावना क्यों नहीं है ? १ गो. जी. ५८२. स. त.१.३३. २ युक्त्यनु. ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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